आखिरी खत (स्मृति चिन्ह-भाग2)

आभा अपलक डायरी के पन्नों को पलटती रही, सहसा उसकी नजर अधलिखे खतों पर पड़ी पर पढ़ने का साहस नहीं जुटा पायी उसे घर जाने की शीघ्रता थी। इन स्मृति चिन्हों को उसने मेज की दराज में संभाल कर रख दिया उन्हें वो घर नही ले जाना चाहती थी। नहीं चाहती थी कि पति और बेटा को अपने अतीत से अवगत कराएं। अतीत के पन्ने रह रहकर उसके स्मृति पटल पर उभर रहे थे। पीछा छुड़ाना चाहती थी बहुत सी बातों से पर मन वही पहुंच जाता था। रातभर सोने की असफल चेष्टा करती रही और करवटों में रात गुजर गयी। बेटे ने पूछा भी था, माँ कुछ परेशान हो क्या? झूठ नहीं बोल सकती थी अतः बोल दिया किसी पुराने मित्र की देहांत की खबर से दुखी हैं।

   अगले दिन डायरी पढ़ना शुरू किया तो अश्रुधार बंद होने का नाम ही नही ले रहे थे। रिश्ता तोड़कर भी कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है? वो सच में कर्तव्य और प्रेम के बीच जिंदगी भर जूझता रहा।

ऐसी जाने कितनी बातें थी जो अनकही रह गयी और अतीत के पन्नों में खो गयी। समर कक्षा का सबसे होनहार छात्र था हमेशा पीछे की सीट पर अकेले बैठता, वो अंतर्मुखी था, लेक्चर खत्म होते ही गायब होता। एकदिन आभा ने उससे पूछ ही लिया कि वो अकेला क्यों रहता है? किसी से बात क्यों न नहीं करता? उसने बताया था कि पिता फौज में थे सिर्फ पेंशन से घर चलाना थोड़ा मुश्किल था अतः वो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था। आभा ने अपने जिद्द से उसे दोस्तों में शामिल कर लिया था, वो भी उसके मोहक अंदाज से काफी प्रभावित था सूरत भी बहुत प्यारी थी, एकबार कोई देख ले तो किसी चीज़ के लिए मना नहीं कर सकता था। लड़के तो उससे बात करने के बहाने ढूंढते थे पर उसकी नजरें सिर्फ समर को ढूंढती थी। धीरे-धीरे उनकी दोस्ती प्रगाढ़ होती गयी। 

लैबोरेटरी में बायोकेमिस्ट्री के प्रैक्टिकल चल रहे थे और दोस्तो ने प्रैक्टिकल क्लास बंक करने की योजना बना रखी थी पर समर को इसके लिये राजी करना आसान न था, आभा की नाराजगी औऱ खुशियों के खातिर उसने पहली बार क्लास बंक किया।

जन्मदिन पर नौकाविहार की योजना बनाई गई थी, गंगा की लहरों पे मंत्रमुग्ध नाविक ने लाउडस्पीकर पर राजा हिंदुस्तानी का गाना बजा रखा था उनदिनों इस फ़िल्म के गानों की धूम मची हुई थी। प्रकृति के आगोश में सबकी छिपी प्रतिभा बाहर निकल कर आ रही थी, सभी प्रसन्नचित थे। जनवरी का सर्द महीना और नदी के मध्य तेज हवा के झोंखो से समर को सर्दी लग रही थी, उसे ठिठुरता देख दोस्तों ने उसकी खूब टाँग खिंचाई की थी "तुम तो समर हो इस सर्दी में डटे रहो।" तत्पश्चात उसे महीने भर सर्दी बुखार लगा रहा। आभा को कितने उलाहने देता "नाव पर तुम्हारा जन्मदिन मनाने का ये सौगात मिला है।"

   वक़्त दोनों को करीब ला रहा था, दीवाली में समर का परिवार गाँव गया हुआ था तो आभा ने उसे खाने पर बुला भेजा ताकि परिवार से भी परिचय करा सके। उसने रायता नहीं खाया तो आभा ने कहा "मुझे तो पता नहीं था कि तुम्हें दही से एलर्जी है।" तुम्हे तो मेरे सारे पसंद नापसंद पता है मुझे क्यों नहीं पता चला? मुझे तुम्हें औऱ तुम्हारी पसंद जानने की चाह थी इसलिए उन सभी चीजों से अवगत हूँ। तुम्हें उतनी जरूरत नहीं पड़ी इसलिए तुम नहीं जानती। तुम्हारे और मेरे बीच अमीरी-गरीबी का फासला है। मैं निम्न मध्यम श्रेणी का हूँ तुम्हें ये सारे सुख सुविधाएं नहीं दे सकूँगा। बेहतर है हम इस राह मे सँभल जाये। आभा को पूरा यकीन था कि वो माँ पापा को मना लेगा। इसलिए वो बैंक में प्रोबेशनरी अफसर की तैयारी करने लगा और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में कार्यरत हो गया। थोड़ी आनाकानी पर अपनी इकलौती बेटी की खुशी के लिए डॉक्टर साहब ने समर को स्वीकृति दे दी थी। 

   कार्तिक पूर्णिमा को वो घर वालों की सहमति से आभा को अपना गाँव दिखाने ले गया। उसने ही बताया था कि वहाँ इस दिन यमुना में स्नान करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके मिट्टी के दीपक नदी के घाट पर सूर्यास्त के समय जलाये जाते है। ऐसी मान्यता हैं कि सभी देवता गंगा नदी के घाट पर आकर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता दिखाते हैं। इस दिन दीपदान का बहुत महत्व है, पवित्र नदियों में दीपदान करने से सभी तरह के संकट समाप्त हो जाता हैं और जातक कर्ज से भी मुक्ति मिल जाता है। जो लोग इस दिन पूरब की ओर मुँह करके दिये दान करते हैं उनपर ईश्वर की कृपा होती हैं। जगमग दीयो से पूरा घाट रौशन हो जाता है, दीप, पुष्प माला नदी के लहरों में हिचकोले खाते बड़ा अनुपम दृश्य दर्शाते हैं। समर के कंधे पर हाथ रखकर वो बोली थी "हम हर साल ऐसे ही दीये जलायेंगे, काश! हमारा एक हाउस बोट होता जिसपर हम शहर की आपाधापी से दूर छुट्टी मनाने आते।" तो ठीक है ससुर जी से बोल देते है तुम्हारे लिए केरल में एक हाउस बोट खरीद दे। समर को उसने आँखों से ऐसा तरेरा की वो सफाई देने लगा था "मुझे नहीं चाहिए ये सब मैं तुम्हारे लिये ही तो कर रहा हूँ।" उसदिन उन दोनों ने भी दीपदान किया, आभा इस नये अनुभूति के साथ बहुत खुश थी। उनकी खुशियों को अचानक से ग्रहण लगा औऱ सब खत्म। मंजिल वही थी बस हमराही बदल गए थे।

आभा ने तो उसे सपने में भी याद नही करना चाहा पर वो उसे एक पल भी नही भूला। चाहा भी नहीं कि कभी भूले, ज्यादातर दोस्त कन्नी काट लिए थे, फेसबुक से कुछ सहपाठियों के माध्यम से उसे थोड़ी बहुत जानकारी प्रायः मिल जाया करती थी। एक बार समर ने उसे बाजार में कुछ खरीदते देखा था पूरी कोशिश की थी कि आभा उसे न देखे। आभा किड्स जोन में अपने बेटे के लिए रिमोट कार खरीदने आयी थी। 

कैसे उसने उन सभी स्मृतियों को संभाल रखा था ये सब उसने डायरी में लिख रखा था। सगाई की दोनों अंगूठियां और कुछ फ़ोटो उसने बड़े जतन से लॉकर में सँभाल रखे थे। वो लॉकर और स्मृतियां ही उसकी जीवन रेखा थी। जब भी समय मिलता तो कुछ लिखने बैठ जाता, कभी घर लेकर नहीं गया। चाहरदीवारी के अन्दर वो एक अच्छा पिता औऱ पति था। उसने अपने हर किरदार को बड़ी ईमानदारी से जीने की कोशिश की फिर भी आभा के प्रति हुए अन्याय से वो अपने को कभी माफ नहीं कर पाया। भीतर ही भीतर वो घुल रहा था सभी को खुश रखना चाहता पर एकांत में सिसकता, उसकी सिसकी उसे निचोड़ रही थी उन यादों के भवर से वो कभी भी बाहर निकल नही पाया।

    लंच से पहले ही आभा ने सबकुछ पढ़ लिया था। जिसके नाम से भी उसे नफरत थी उसके प्रति इतने सालों बाद स्नेह के बादल क्यों उमड़ रहे थे। उसका दिल औऱ दिमाग दोनो बेकाबू हो गया था। घर पहुंची तो नौकरानी बोली दीदी कल मैं जरा देर से आऊँगी तो कल का खाना आप पका लेना, बाकी सारे काम मैंने आज ही निपटा दिए हैं।

क्यों कल क्या है? अरे दीदी भूल गयी, आपको पूजा पाठ, तिथी त्यौहार क्यों नहीं याद रहते? कल कार्तिक पूर्णिमा है हमारे यहाँ यमुना नदी में स्नान किया जाता है घर मे पूजा है, आपकी भी तो कल छुट्टी है, दोपहर बाद आ जाऊँगी।

  चकित हो अच्छा आते वक्त मिट्टी के ढ़ेर सारे दीये खरीद लाना, शाम को द्रोपदी घाट पर चलना है दीये जलाने।

दीदी आप ने तो घर में भी कभी दीये नहीं जलाये.....

आभा टोकते हुए बोली "जितना बोल रही हूँ उतना करो, अपनी कैंची जैसी जुबान मत चलाओ।" किसी नाविक से बात भी करके आना शाम को संगम तक नौकाविहार भी करेंगे औऱ मेरे साथ तुम्हें भी दीया जलाने चलना है।

 नौकरानी के आने तक आभा ने पूरी तैयारी कर ली थी, इतनी फुर्ती से पूरे काम कर रही थी कि वो भी अचंभित थी। सूर्यास्त से पहले घाट पर पहुँचकर उसने पूरब की ओर मुँह कर दीये रोशन कर दिये। नाव में बैठकर देखा गंगा में दिये जगमगा उठे। जब वो दीयों को प्रवाहित कर रही थी तो उसे प्रतीत हुआ देवताओं के संग आज समर भी कुछ पल के लिए यहाँ आया हुआ है। एक जानी-पहचानी अनुभूति हो रही थी। उसने झोले से डायरी और उसकी कुछ स्मृतियों को संगम में सुपुर्द कर दिया,  सगाई की अंगूठी नही प्रवाहित कर सकी उसको पर्स में रख लिया। स्मृति चिन्हों को सुपुर्द करते वक्त वो थोड़ा भावुक हो उठी और उसकी आँखे डबडबा गयीं। वो इतनी खो गयीं थी कि उसके इर्दगिर्द भी कोई है ये खबर न रही। नाविक बोल रहा था देखिए अब और आगे जाना ठीक नहीं, ऊपर घने बादल छा गए थे, कभी भी बारिश हो सकती हैं। पलकों की कोर से आसुओं को पोछते हुए बोली ठीक है किनारे पर ले चलो।

नाविक बोलता रहा अब धीरे-धीरे सभी परंपरा खत्म हो रही हैं। गिने चुने दिन ही कमाने को मिलते है, ऐसे में कहा से खर्च चलाओ और बेटी का ब्याह सर पर बोझ बना हुआ है, ससुराल वालो को हीरे की अंगूठी चाहिए, मैं तो सोने का भी बनवाने का सामर्थ्य नही रखता। अंगूठी नही बनवायी तो रिश्ता तोड़ने की धमकी दी है। बेटी को लड़का पसन्द है नहीं तो हम ई धमकी न सुनते। आभा को लगा उस अंगूठी को उसकी सही जगह मिल गयी। उसने अपने पर्स से निकाल कर वो अंगूठी नाविक को दे दी और बोला अपनी बिटिया का ब्याह उस लड़के से कर दे। नाविक की कृतज्ञ आँखे उसे आशीष देती रही।

 आभा को समर की लिखी पंक्तियों का स्मरण हो आया, ये आभास होने लगा कि उसको मुक्ति मिल चुकी हैं। वो कहता था "मैं वो चातक हूँ जो स्वाति बूँद की तरह बरसो से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं। तुम एकबार देव दीवाली के दिन दीये जलाकर मुझे हर कर्ज से मुक्त कर जाओ। यहां पर तुम मेरी नही हो सकी लेकिन उस दुनिया मे तुम सिर्फ मेरी हो।"





टिप्पणियाँ

  1. प्रत्येक पंक्ति बहुत ही गहराई से लिखी गयी है। हर पंक्ति को पढ़ने के बाद अगली पंक्तियों को पढ़ने की जिज्ञासा और भी बढ़ती जाती है। आश्चर्य है कि कहानी कुछ ऐसे भी लिखी जा सकती है।

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