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टिमटिमाते तारे

  एक ट्रक भिडंत मे बहुत बड़ा हादसा हुआ था, कार में तीन लोग सवार थे, चाचा कार चला रहे थे उन्होंने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया, पिता को हल्का खरोंच आया था, अनुराग की स्थिति बहुत नाजुक थी। महीने भर बाद जाकर वो कोमा से बाहर आया था, ईश्वर की अनुकम्पा थी कि वो काल को परास्त कर आया था। जिंदगी और मौत के जंग में विजयी हो गया पर उसकी कीमत उसे तमाम उम्र भयानक परिस्थितियों का सामना करके गुजारना था। आँखो में सँजोए सभी सपने धराशायी हो गए, उसके चाचा ही उसके प्रेरणा स्रोत थे वो उनका लाड़ला भतीजा था, महीनो तक घरवालों ने उससे चाचा के देहांत की खबर छुपा कर रखी कि कही उसकी मानसिक स्थिति पर इसका बुरा प्रभाव न पड़े। अनुराग अंडर 16 स्टेट फुटबॉल टीम का कप्तान होने के साथ ही अपने स्कूल का टॉपर भी था। पढ़ने और खेल दोनो मे होनहार होने के कारण घर-परिवार और स्कूल में सबका चेहता था। वो दो साल तक स्कूल की शक्ल नही देख सका, उसके शरीर में तीव्र गति का कम्पन रहता, एथलेटिक शरीर वाला अनुराग बिना सहारे के दो कदम चलने मे असमर्थ था। उसका देखभाल करने के लिए माँ ने नौकरी छोड़ दी, ये उन्हीं के अथक प्रयास का नतीजा था कि वो पहले माँ क

आखिरी खत (स्मृति चिन्ह-भाग2)

आभा अपलक डायरी के पन्नों को पलटती रही, सहसा उसकी नजर अधलिखे खतों पर पड़ी पर पढ़ने का साहस नहीं जुटा पायी उसे घर जाने की शीघ्रता थी। इन स्मृति चिन्हों को उसने मेज की दराज में संभाल कर रख दिया उन्हें वो घर नही ले जाना चाहती थी। नहीं चाहती थी कि पति और बेटा को अपने अतीत से अवगत कराएं। अतीत के पन्ने रह रहकर उसके स्मृति पटल पर उभर रहे थे। पीछा छुड़ाना चाहती थी बहुत सी बातों से पर मन वही पहुंच जाता था। रातभर सोने की असफल चेष्टा करती रही और करवटों में रात गुजर गयी। बेटे ने पूछा भी था, माँ कुछ परेशान हो क्या? झूठ नहीं बोल सकती थी अतः बोल दिया किसी पुराने मित्र की देहांत की खबर से दुखी हैं।    अगले दिन डायरी पढ़ना शुरू किया तो अश्रुधार बंद होने का नाम ही नही ले रहे थे। रिश्ता तोड़कर भी कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है? वो सच में कर्तव्य और प्रेम के बीच जिंदगी भर जूझता रहा। ऐसी जाने कितनी बातें थी जो अनकही रह गयी और अतीत के पन्नों में खो गयी। समर कक्षा का सबसे होनहार छात्र था हमेशा पीछे की सीट पर अकेले बैठता, वो अंतर्मुखी था, लेक्चर खत्म होते ही गायब होता। एकदिन आभा ने उससे पूछ ही लिया कि वो अक

वो आखिरी खत

 संध्या की बेला थी घर मे खुशिया झूम रही थी समर और आभा की सगाई की रस्म थी बस कुछ ही दिनों में दोनों परिणय सूत्र में बंधने वाले थे। बड़ी मिन्नतों के बाद ये अवसर आया था। आभा के अभिभावकों को मनाने के लिए समर को कितने पापड़ बेलने पड़े थे ये वही जनता था। वो लोग प्रेम विवाह के समर्थक नहीं थे उन्हें मनाना किसी किला फतेह से कम न था। समर चहता था सगाई के अवसर पर वो हरे रंग की साड़ी पहने, उसपर हरा रंग बहुत जंचता था। समारोह को सफल बनाने मे आभा के पिता ने कोई कसर नही छोड़ी थी। बड़े धूमधाम से आयोजन पूरा हुआ शहर के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित हुये थे आखिर उनकी इकलौती संतान की बात थी। आभा के पिता शहर के वरिष्ठ हार्ट सर्जन थे वो अपनी बेटी के लिए डॉक्टर वर चाहते थे परंतु बेटी की जिद्द और समर के मिन्नतों से उनका दिल पसीज गया था। समर ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में मैनेजर के पद पर कार्यरत था। आभा हॉर्टिकल्चर इंस्पेक्टर थी उसे डॉक्टर बनने में कोई रूचि न थी। वो देखती थी उसके अभिभावकों का दिनचर्या कितना व्यस्त था। उसे सुकून भरी ज़िन्दगी की इच्छा थी कहती जरूरी नहीं घर में सभी डॉक्टर हो। जिस दिन से उसने सगाई की अंगूठी उं