अगर तुम साथ हो: रिश्तों की सौदेबाजी

उत्तरभारत मे आज भी अदला-बदली कुप्रथा प्रचलित है। राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के ग्रामीणांचल में आटा-सांटा प्रथा आज भी देखने को मिलता हैं। इसके अन्तर्गत एक परिवार में किसी लड़के की शादी करनी है तो उस परिवार की भी एक लड़की की शादी उसके ससुराल में करनी होती है। जिन परिवार मे लड़किया नही है, उनके लड़को की शादी नही हो पाती हैं। लैंगिक असमानता के कारण शुरू हुई इस प्रकार की रिश्तों की सौदेबाजी और भयावह हो जाती है, यदि दोनो में से कोई रिश्ता भविष्य में टूटता है, तो दूसरे को भी तोड़ना पड़ता है। इस सौदेबाजी की शिकार महिलाएं या तो डिप्रेशन (अवसाद) की शिकार हो जाती है यहाँ तक आत्महत्या भी कर लेती हैं।

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मैं ये घोषणा करती हूँ कि ये कहानी पूर्णतया स्वरचित है और इसके सभी पात्र काल्पनिक है। 

मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं से ओत-प्रोत आटा-सांटा विवाह प्रथा के इर्दगिर्द घूमती एक काल्पनिक प्रेम कहानी है। ये तीन बहनों और उनके इकलौते भाई के मानवीय संवेदनाओं की कहानी है।

मानव स्वरा से कह रहा था "तुम्हारे साथ होना ही मेरी सबसे बड़ी तकलीफ का कारण है।" जब मेरी और तुम्हारी शादी तय हुई थी उसी समय मेरे घरवालो ने तुम्हारी मंझली बहन का हाथ अभिनव के लिये माँग लिया था। उस समय तुम्हारे घरवालों को कोई एतराज नही था, पर आज उन्हें अक्षरा के साथ अभिनव का रिश्ता मंजूर नही है। उन्होंने लिखित तौर पर दिया था कि अक्षरा की शादी मेरे छोटे भाई से करेंगे तभी तुम्हारे निखट्टू भाई अंकुर की शादी मेरी बहन मानवी से होगी अन्यथा नही।


स्वरा ने प्रतियुत्तर किया "मानवी और अंकुर एकदूसरे से प्यार करते है।" अभिनव बुरी संगत में है, न पढ़ाई पूरी किया न ही काम धंधा करता है, आये दिन बुरे लड़के लड़कियों के सोहबत मे रहता है।" कौन सी शरीफ लड़की उससे प्यार और शादी करेगी?


मानव का गुस्सा बढ़ रहा था "फिर लिखित में तुम्हारे घरवालों ने क्यों दिया था? आज जब शादी की बात आयी तो मुकर रहे है।"


स्वरा उसका गुस्सा शांत कराना चाहती थी अतः वो शांत स्वर में बोली "मेरे घरवालों को कोई आपत्ति नही थी लेकिन अक्षरा नही चाहती तो जबरदस्ती तो नही कर सकते।" आप को पता है न जबरदस्ती का अंजाम क्या होगा? अक्षरा ने कही कुछ कर लिया तो क्या होगा? इसका जिम्मेदार कौन होगा? 


मानव का गुस्सा फूट पड़ा "मैं नही जानता इसका जिम्मेदार कौन होगा? मैने फैसला किया है अब मानवी और अंकुर की शादी भी नही हो पाएगी।" एक रिश्ता तुम्हारे घर वालों ने तोड़ा दूजा रिश्ता मैं तोड़ रहा हूँ।


स्वरा बोलती रही "मानव आप ये अच्छा नही कर रहे है, आपका ये निर्णय प्रतिशोध से भरा हुआ है।" 


मानव ने झल्लाकर बोला "तुम्हें जो समझना है समझो और मेरा ये संदेश अपने घरवालों तक पहुँचा दो।" 

वो विनम्र होकर बोली "अंकुर और मानवी के हित में तो आप सोच लेते। दोनो बच्चे एकदूसरे से कितना प्यार करते है?" 


इस बार मानव तिलमिला उठा "जब बात अपने भाई की आयी तो प्यार की याद आ गयी। मेरा भाई अभिनव, उसका क्या होगा?" वो भी तो अक्षरा से आस लगा बैठा है। क्या उसका प्यार प्यार नही? आज वो सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गई है तो रिश्ता ठुकरा रही है। कल ऐसी परिस्थितियों में अभिनव रिश्ता तोड़ देता तो क्या मानवी और अंकुर के रिश्ते पर इसका बुरा प्रभाव नही पड़ता? अभी भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा है अपनी नकचढ़ी बहन को समझाओ। अगर अक्षरा नही तैयार है अभिनव से शादी को तो मुझे कोई आपत्ति नही है, अपनी छोटी बहन अंतरा या चाचा की लड़की का ब्याह हमारे अभिनव से करा दो। हमें भी कोई एतराज नही होगा। हमें भी ऐसी नकचढ़ी लड़की को मुँह लगाने का कोई शौक नही रहा। मुझे मालूम है वो हमारे और अभिनव की जिन्दगी मे जहर घोल देगी। अभिनव को पसंद नही होती तो इतनी जोर भी नहीं देता, एक बुरा वाकया समझकर भूल जाता। 


स्वरा बोली चाचा राजी नही होंगे? कोई भी पिता अभिनव जैसे लड़के से अपनी बेटी की शादी नही करेगा। 


अंतरा मेडिकल की पढ़ाई कर रही है वो भी हरगिज नही मानेगी। उनदोनों को किस गलती की सजा मिले?


तो फिर अपने भाई अंकुर के लिए कोई दूसरी लड़की तलाशो। मानवी का ख्याल भी तुम सभी लोग अपने दिल से निकाल दो। वो ऑफिस जाने को तैयार था अपना लैपटॉप बैग उठाते हुए बोला "तुमलोगों ने जिस स्थिति मे मुझे और मेरे परिवार को लाकर खड़ा कर दिया है उस स्थिति मे तो मुझे हमारे रिश्ते के बारे मे भी फिर से सोच विचार करना पड़ेगा।"


"मानव आप इस बात को कुछ ज्यादा ही तूल दे रहे है। कम से कम इसकी आंच हमारे रिश्ते पर न पड़ने दे। हमारे दो प्यारे बच्चे है, इन सब का उसपर बुरा असर पड़ेगा।" स्वरा ने विनम्र होकर कहा। 


मानव गुस्से में और आक्रामक हो गया  "पड़ता है तो पड़े 'माई फुट' मैं भी तो तुम्हें आठ सालों से ढो रहा हूँ।" ये कहकर मानव ऑफिस चला गया।         

       स्वरा सोचती रही और रोती रही "मैंने जिस गृहस्थी को अपने खून पसीने से सींचा है, अपनी पूरी जिंदगी सभी रिश्तों को सहेजने में लगा दिया उसका क्या खूब इनाम मिला है। मानव हमारे रिश्ते को ढो रहे है। जब बात-बात पर गुस्सा करते थे तो मुझे लगता था कि ये महज उनका स्वभाव है। ये तो मालूम था कि उन्होंने अपनी पारिवारिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए ये रिश्ता किया था, पर मैं और मेरा अस्तित्व उनपर बोझ है। अपना सर्वस्व न्यौछावर करने पर भी अभी तक मेरी अपनी कोई पहचान नही है। स्वरा के मन मे दुनिया भर के ख्याल आते जाते रहे। पता नहीं किस उधेड़बुन में वो दिनभर अपने कमरे मे ही पड़ी रही। 


      वो तीनो, बहने कम सहेलियाँ ज्यादा दी थी। स्वरा और अक्षरा के बीच छह साल का फासला था तो वही अक्षरा और अंतरा के बीच मे सिर्फ तीन साल का अंतर था। बड़ी मन्नत और मिन्नत के बाद जगजीवन के घर एक पुत्र पैदा हुआ था। शायद ही कोई मंदिर बचा था जहाँ जाकर माथा न टेका हो तथा पुत्र रत्न प्राप्ति हेतु टोने टोटके न किये हो। अंकुर उनका लाड़ला पुत्र था, ज्यादा लाड़ प्यार ने उसे बिगाड़ दिया था। जिस भी चीज पर हाथ रख देता वो चीज तुरंत उसके लिए हाजिर हो जाती थी।   


  जगजीवन एक पुत्र की चाह में तीन पुत्रियों के पिता बन गए थे। अंकुर के होने के पश्चात बड़े गर्व से मूछों को ताव देते थे। तीनो पुत्रियों के दौरान उनका मुख मलिन हो गया था। तीसरी पुत्री के पैदा होने पर तो इतना शोक हुआ था उन्हें कि महीनों उसकी शक्ल नही देखी थी। इन सब से दुखी होकर मालती देवी उसे घूरे पर फेंक आयी थी। दो दिन भूखी प्यासी रहकर भी जाने कैसे बच्ची जिंदा रह गयी! पड़ोस की रागिनी ताई बच्ची को घूरे पर पड़े देख अपने घर उठा ले गई थी। रुई की बाती से बकरी का दूध पिलाकर बच्ची को जिंदा रखा था बाद में जिसका नामकरण अंतरा के रूप मे किया गया। रागिनी ताई के बहुत समझाने बुझाने पर उसे परिवार मे जगह मिली। जब अंकुर होने वाला था मालती देवी डरी सहमी पूरे नौ महीने गुजारी थी कि अगर बेटी को जना तो उनका भी घर निकाला हो सकता है। इसबार ईश्वर की कृपा बनी रही और उन्हे अंकुर के रूप मे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गयी। जगजीवन के चेहरे की भी पुरानी रौनक लौट आयी थी और मालती को भी घर परिवार में फिर से इज्ज्त मिल गयी थी।

2

जगजीवन एक धनाढ्य सेठ के बेटे थे। ईश्वर की उनके परिवार पर असीम कृपा बनी हुई थी। उनसे छोटी एक बहन और भाई थे। घर पर माँ लक्ष्मी की अनुकम्पा बनी हुई थी। जगजीवन बचपन से ही पोलियो ग्रस्त थे अतः स्कूल नही जा सके। छोटा भाई रामसजीवन पढ़ाई लिखाई करके दिल्ली शहर में बस गया। उसके एक बेटा और बेटी है दोनों ही दिल्ली मे पढ़ते है। कभी-कभार गर्मी की छुट्टियों में दोनो परिवारों को साथ समय बिताने को  मौका मिल जाया करता। बच्चों का आपस मे बहुत अच्छा मेलजोल था, उनके अंदर चचेरेपन वाली भावना नही थी।


   बड़ा बेटा जगजीवन पोलियो ग्रस्त होने के कारण स्कूल तो नही गया और इंटरमीडिएट से ज्यादा पढ़ाई नही कर सका। अपार धन संपदा, जमींदारी देखकर उसकी शादी भी अदला-बदला प्रथा की भेंट चढ़ गयी। धन दौलत से किसी भी गरीब की बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह सकते थे फिर भी लड़की हमेशा इस घर की होकर रह जाये भारी दहेज देकर अपनी बेटी भी उसी घर मे ब्याह दी थी। इतना सारा दहेज पाकर बेटी का भी घर में वर्चस्व था और जगजीवन के लिये भी बहुत ही सुंदर और सुशील कन्या मिल गयी थी। मालती के भाई की एक आँख भेंगी थी तात्पर्य ये है वो देखता कही था, दिखता कही था पर इससे देखने मे कोई परेशानी नही थी और इस छोटे से ऐब को नजरअंदाज किया जा सकता था । दोनो परिवारों को एकदूसरे की जरूरत थी, नब्बे दशक के शुरुआत में लड़कियों की मंजूरी इतनी मायने नही रखती थी। लड़कियों में इतनी क्रांति नही आई थी कि वो आजकल की लड़कियों की तरह प्रस्ताव ठुकरा सके।


    रिश्ता होने के लिए लड़के के पास धनदौलत, नौकर-चाकर घर और तमाम ऐश्वर्य है इतना ही काफी था। लड़की बुरी परिस्थितियों में भी जिंदगी भर आराम से रह सकती है और उसे मायके मे सहारा न ढूँढना पड़े यही उसके हित मे होता था। लड़की को भी करियर से ज्यादा गृह कार्य मे दक्ष बनाया जाता था। जो लोग लड़की देखने आते थे उनकी निगाहे लड़की की चाल कही लंगडी, लूली तो नही है, कढ़ाई, बुनाई, और भजन, कीर्तन कर लेती है या नही, घरेलू टाइप कामकाजी है या नही तक ही सीमित थी। पूछने का भी तरीका होता था सासुराल पक्ष वाले पूछते थे "बिटिया कोई देवी माँ का गीत सुना दो या कोई सोहर गा दो।"


बस इतनी सी ही जरूरत थी, उन्हें संगीत या नृत्यकला में पारंगत बहू की जरूरत नही होती थी और ज्यादा हुआ तो नवरात्रि में ढ़ोलक बजा लेती है, घर परिवार संभाल लेती है इतनी ही की अपेक्षा होती थी। एक उच्च और निम्न मध्यम वर्ग परिवार बस यही इच्छायें रखता था।


     अंतरा मेडिकल कॉलेज से घर आयी तो खोयी हुई थी, आज उसके चेहरे की कांति गायब थी। आज वो अपनी दोनों बहनों के साथ अपने मन के भाव जाहिर करना चाहती थी पर दोनों ही उससे बहुत दूर रहती थी, इस समय उनसे बात कर पाना ठीक नही लगा तो वो माँ के पास कुछ प्रश्नों को लेकर बैठ गई। अगले ही पल अंतरा मालती देवी को झकझोर रही थी "बोलो माँ तुम्हारा भी साठा ब्याह हुआ था, क्या तुम अपने ब्याह से खुश थी? क्या तुम पापा के साथ अब खुश हो?


मालती सोचने लगी आज से पहले उससे ये प्रश्न किसी ने नही किया, न ही खुद की जनी संतानों ने, न ही मायके वालों ने, किसी ने कभी नहीं जानना चाहा कि वो खुश है या नही। उसके पति ने भी कभी जानने की इच्छा नही जताई, शायद डर था कि नही कह देगी तो उनको ठेस पहुँचेगा। थोड़ा गंभीर होकर बोली "हमारे जमाने में लड़की से स्वीकृति नहीं ली जाती थी, जहाँ घरवालों ने ब्याह तय कर दिया करना पड़ता था, कभी किसी ने लड़की की इच्छा नही जाननी चाही।"


अंतरा पूछ रही थी "माँ तुम इस शादी से खुश हो, मेरा कहने का मतलब था पापा वैसे इंसान हैं जैसे आपने सोचा था?"


मालती हाथ झटकते हुए "हटो भी ये क्या चोंचले लगा रखे हैं?" चार बच्चों की माँ हूँ, तीन बेटियों और एक बेटे को जना है, ऐसा पूछने का औचित्य क्या है?


अच्छा अपनी छोड़ो, हमारी स्वरा दीदी अपनी शादीशुदा जिंदगी और घर गृहस्थी में खुश है?


मालती को अतीत याद आया सदियों से लड़कियों को भेड़, बकरियाँ समझकर अनचाहे रिश्तों में बाँध दिया जाता है।

उससे ही उसकी मर्जी पूछी जाती तो अपनी हमउम्र किसी नवयुवक को पसंद करती। उसका बचपन और यौवन तो गरीबी की भेंट चढ़ चुका था। माँ बाप ने जिसके साथ गठबंधन जोड़ दिया निभाना था। स्वरा से भी तो किसी ने उसकी पसंद नही पूछी थी। पिता ने मोटी दहेज की रकम दी थी, उनदिनों मानव ठीक से अपने को स्थापित भी नही कर पाया था। पिता जी थे नही पूरी घर गृहस्थी की बागडोर मानव के कंधे पर आ गया था। वो तो ये भी नही जानती कि दामाद ने दहेज की रकम को हाँ बोला था या उसकी स्वरा को। न उससे कभी घरवालों ने उसकी मर्जी जाननी चाही थी, न ही किसी ने स्वरा के मन के भाव जानने चाहे। 


स्वरा को नृत्य और संगीत का कितना शौक था, नृत्य प्रतियोगिता में उसने भाग लिया हो तो मजाल है किसी और के हाथों ट्रॉफी लग जाये? ये दोनों लड़कियां तो मुखर थी, बात-बात पर विद्रोह कर देती है वो तो कभी अपने मन की बात भी नही बताती थी। बाइस की थी जब उसकी शादी कर दी गयी थी। उसने तो नाम भी नही पूछा था कि किसके साथ उसे ब्याहा जा रहा है।


  स्वरा ने पता नहीं किस उधेड़बुन में अक्षरा को फोन लगा दिया। स्वरा के मन के भीतर उठे हलचल से अक्षरा भली भांति अवगत थी।

अक्षरा पूछ बैठी क्या हुआ दीदू कुछ परेशान हो?


हाँ आज सुबह मानव से फिर तुम्हारे और अभिनव के रिश्ते को लेकर बहस हो गई। वो भी गुस्से में चले गए और मुझे भी उनकी कुछ बातें तकलीफ पहुँचा गयी। स्वरा ने सबकुछ कह दिया।


मैने आपको भी दुखी कर दिया दीदू , मेरे वजह से आपकी जिंदगी में भी बवंडर आ गया। मै अच्छी बहन नही हूँ।

मैं क्या करूँ दीदू?

अभिनव इस लायक नही है कि मैं घरवालों के मान रख सकू। मेरे ऑफिस में एक लड़का है जो मुझे अच्छा लगता है, पर मुझे ये भी नही पता कि वो मेरे बारे में क्या सोचता है?


आजतक एक भी सांकेतिक शब्द उससे नही मिल पाया जिससे उसके मन के भाव उजागर होते। अभिनव से शादी करने से तो अच्छा है मैं शादी ही न करूँ। इस तरह से खुदकुशी ही करनी है तो किसी से दिल लगाकर करूँगी। लोगों को ये तो लगेगा किसी के प्यार में ऐसा कदम उठाया है। देखिए तभी बहुत सारी डेटिंग साइट जॉइन कर रखी है। रोज दो घंटे इधर समय देती हूँ।

कल किसी लड़के को डेट करने जा रही, सोचा आपको बता दूँ।


स्वरा ने उसे डाँटा "खबरदार जो फिर कभी ऐसी बातें की, मेरे होते तुम्हारी जिंदगी बर्बाद नही होगी।" मैं तुम्हारे हर फैसले के साथ हूँ। अंतरा को भी बता देना कि तुम वहाँ जा रही हो, घर मे किसी को तो पता रहेगा कि तुम किससे मिलने जा रही हो। इस बात का अवश्य ध्यान रखना।


"आप निश्चिंत रहे दीदू मैं अंतरा को बताकर जाऊँगी।" स्वरा का इतना आश्वाशन ही अक्षरा के लिए काफी था। उसे लगता वो अब इस लड़ाई में अकेली नही है और हार मानना तो उसे आता ही नही था। 


उसे पूरा यकीन था अपनी बहनों की मदद से इस आटा-सांटा प्रथा से लड़ सकेगी और लोगों को भी इसका बहिष्कार करने के लिए प्रेरित करेगी। किसी न किसी को तो इन कुरीतियों से लड़ने की शुरुआत करने के लिए आगे आना पड़ेगा।

3

"कोई प्यार ढूँढने निकला 

    कोई एतबार ढूँढने निकला 

    रिश्तों के बाजार मे कौन

     देख लो इसबार सरेआम

    खरीद फरोख्त करने निकला।"


     अक्षरा अपनी छोटी बहन अंतरा से फोन पर कह रही थी "यार दिमाग का दही जम चुका है। मै तुम्हें कैफे का लोकेशन मैसेज कर देती हूँ, मेरा GPS काम नही कर रहा है।"  सात बजे लड़के से मिलने जाना है। मैं तो तंग आ गयी हूँ ये मिलने-मिलाने की झंझटों से। मम्मा पापा को बोला था 'डेटिंग साइट' जॉइन कर लेने दो लेकिन तब उनको प्रॉब्लम थी। अब दो साल बाद बोल रहे है कि कोई डेटिंग साइट जॉइन कर लो। मुझपर एतबार किया होता तो मैंने अब तक लाइन लगा दी होती और पापा आराम से लड़को का चयन कर लेते। अभी तक अच्छा खासा तजुर्बा में भी इजाफा हो गया होता।


   कैफे में पहुँची तो कोई भी लड़का अकेला नजर नही आ रहा था, एक कॉर्नर की टेबल खाली पड़ी थी उसपर जाकर बैठ गई। वो सब कुछ बर्दाश्त कर सकती थी पर जो लोग समय की इज्ज्त नही करते थे वो उसकी नजरो में बहुत ही तुच्छ प्राणी थे। अब तक उसने अपने लिये एक कॉफी आर्डर कर दिया था। लड़का पूरे बीस मिनट बिलम्ब से आया था। आते ही बैंगलोर की ट्रैफिक का हवाला देने लगा था।


आगंतुक ने पूछा आप अक्षरा है?


जी हाँ, और आप आदित्य शर्मा।


लड़के ने स्वीकृति में सिर हिलाया।


मैं एक कॉफी पी चुकी हूँ आपका इंतजार करके दुबारा नही पी पाऊँगी, ये कॉफी भी न पीने के बाद अपना कसैला स्वाद छोड़ जाता है।


आदित्य भी समय गवाने के मूड़ में नही था, अगर आप को एतराज न हो तो कुछ प्रश्न पूछ सकता हूँ। बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये उसने पहला प्रश्न पूछ ही लिया। आप अपने रेलशनशिप स्टेटस में "इट्स कॉम्प्लिकेटेड क्यो लिखती है?"

मेरा कहने का मतलब यह एक जटिल रिश्ता है ऐसा आपने अपने स्टेटस में क्यो लिखा है?


तो आप मेरा रिलेशनशिप स्टेटस जानना चाहते है। उसने आगे बोलना शुरू किया "जी हर चीज के पीछे कोई न कोई कारण तो होता ही है।"

आदित्य जी, मैं अपने रिश्ते को कोई नाम नही दे पा रही हूँ। मेरी शादी मेरे घरवालों ने आठ साल पहले किसी से तय कर दी थी। मुझे वो पसंद नही है डेंटिंग शेटिंग की तो बात ही छोड़े मुझे उसकी शक्ल भी नही पसंद है। उसका नाम सुनते ही खून में उबाल आने लगता है। रिश्तेदारी मे बात तय हुई थी शादी तो उसका दबाव लड़की पर कितना होगा ये आप समझ ही सकते है। 

क्या यही सवाल मैं आप से भी पूछ सकती हूँ कि "आपने अपने स्टेटस में सिचुएशनशिप में हूँ क्यों लिखा है?"


मैं अपनी रिलेशनशिप स्टेटस जगजाहिर नही करना चाहता इसलिए ऐसा लिखता हूँ।


"क्यों कोई तो वजह होगी इसकी?" अक्षरा ने प्रश्न किया।


आजकल के युवाओं के लिए एक नया ट्रेंड बनता जा रहा है। डेटिंग करने के बाद भी अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दे पा रहे है। कईबार हम दोस्ती से तो आगे बढ़ जाते हैं लेकिन पार्टनर के साथ रिलेशनशिप को नाम नहीं दे पाते हैं। इसलिये मै अपने आपको सिचुएशनशिप में कहता हूँ। आम दोस्तों की तरह रहते हुये भी, एक दूसरे से बातें करते हैं, सारी चीजें शेयर करते हैं, डेटिंग करते हैं लेकिन औपचारिक तौर पर रिश्ते को स्वीकर करने से डरते हैं।


"सारी चीजें शेयर करने से क्या तात्पर्य है आपका? 

आप उसके साथ अपना रूम एंड बेड भी शेयर करते है।" अक्षरा ने पूछा।


आदित्य ने थोड़ा हिचकिचाहट में 'जी' कहा।


अक्षरा ने तपाक से कहा "तो सबकुछ शेयर करने के बाद भी आप अपने रिश्ते को नाम नही देना चाहते। ये क्यों नही कहते कि आप 'लिव इन रिलेशनशिप' में है।"  मुझे एक बार लगा फिल्में देखते हुए पॉपकॉर्न शेयर किया होगा या ज्यादा से ज्यादा कार्नर सीटपर बैठकर फिल्म के बहाने अपनी गुफ्तगू शेयर की होंगी। आपने छोड़ा क्या है?


"अगर कहता मैं 'लिव इन' मे हूँ तो आप मुझसे मिलने यहाँ इस कैफे में आती?" आदित्य ने सवाल किया।


"जी कदापि नही" अक्षरा का सपाट सा जवाब था।


आदित्य आगे बोलता रहा "मेरी पार्टनर बहुत पोजेसिव और डिमांडिंग है, कह सकती है उसे किसी हद तक मेरा ओबसेशन है।" हरहाल में उससे छुटकारा पाना चाहता हूँ, उसके साथ मुझे घुटन महसूस होने लगी है। घरवाले चाहते है मैं किसी से शादी करके घर बसा लूँ।


 अक्षरा ने प्रश्न किया "आपके घर मे आपके इस रिलेशनशिप के बारे मे पता है?"


"नही किसी को नही" आदित्य ने बोला।

आप लिव इन का खुलासा घर पर नही करना चाहते और किसी अन्य लड़की से शादी करके घर बसाना चाहते है।


आपकी 'लिव इन' पार्टनर का क्या होगा? उसे उसके हाल पर छोड़ देंगे।

इतना कहकर वो वहाँ से उठकर कॉउंटर पर पेमेंट करने चली गयी।


आदित्य ने पूछा "आप इतने जल्दी जा रही है। अभी तो हमारी कोई बात भी नही हुई।"


"हम यहाँ ग्लोबल वार्मिंग के वार्ता के लिए नही आये थे।" ऐसा कहकर अक्षरा उसे तीखी नजरों से घूरते हुए बाहर की ओर निकल गयी। वो बस उसे जाते कातर नजरों से देखता रहा।


   गर्ल फ्रेंड सबको हाई फाई चाहिए पर शादी के लिए हमेशा घरेलू और संस्कारी कन्या चाहिए। आज के दौर में पुरूष स्त्रियों का शोषण भी करता है और यह भी चाहता है कि समाज में उजागर भी न हो। 


लड़कियों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि वह कैसे रहे, किस तरीके से लोगों के साथ आचरण करे। परिवार यह चाहता है कि उसे हर घरेलू शिक्षा दी जाए। जिसके कारण उसकी ससुराल में प्रशंसा हो ताकि आगे चलकर उसे किसी कष्ट का सामना न करना पड़े। माता-पिता अपनी लड़की को मर्यादा में बाँधकर रखते है और चाहते है ठीक उसी प्रकार से ससुराल में रहे, प्रायः यही उनकी सोच होती है। वो सभी के समक्ष नतमस्तक होकर रहे सब यही चाहते है ताकि घर बसा रहे और परिवारिक कलह न हो। 


   अक्षरा अगले दिन उखड़े मन से ऑफिस पहुँची। आज उसका सहयोगी नमन उसे साथ फिल्म देखने का ऑफर कर रहा था पर उसने मना कर दिया। झल्लाकर बोली थी "तंग आ गयी हूँ तुम्हारे साथ फिल्में देखकर और पॉपकॉर्न खाकर कोई और ढूँढ लो जो तुम्हारे साथ पॉपकॉर्न खा सके।"


नमन भी उसके व्यवहार में हुये बदलाव से भौचक्का रह गया था। बॉस के रूम से बाहर निकलते हुए उसने बोला था "मैं रिजाइन कर आयी हूँ, मुझे दूसरे कम्पनी में ज्यादा अच्छा पैकेज ऑफर हुआ है।" 


नमन ने उससे सिर्फ यही पूछा था कि वो यहाँ से जा रही है। जैसे खुद को यकीन दिलाना चाह रहा था, उसके बदले तेवर से थोड़ा चिंतित भी था पर कोई जिक्र नही कर सका। 


अक्षरा ने बोला "हाँ दो महीने का नोटिस पीरियड खत्म करने के बाद वो यहाँ से जा रही है, उसका इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है।"

4

मानवी बारहवीं में पढ़ती थी कोई ज्यादा उम्र भी नही थी लेकिन अंकुर के प्रति भावनाए प्रबल थी। बड़ो के मुँह से अकसर रिश्ते की बातें सुन चुकी थी इसलिये उसके प्रति लगाव होना अस्वभाविक नही था। भाभी का भाई होने के नाते प्रायः उसका घरपर भी आना-जाना रहता था। भाभी से दिन में एक-दो बार उसका किसी न किसी माध्यम से जिक्र हो ही जाता था। तीज त्यौहार पर मुलाकात भी हो जाया करती थी। दोनों में तीखी नोकझोंक भी हुआ करती थी इसलिए घरवाले दोनों की भावनाओं से भलीभांति अवगत हो चुके थे।

वही अभिनव को देखते ही अक्षरा का खून उबाल लेने लगता था। वो पढ़ने मे बहुत ही होशियार थी, अभिनव बिना नकल के दसवीं से बारहवीं तक पास नही कर पाया, एक हीरा थी तो दूसरा कोयला। सिगरेट, गुटका, शराब और आवारागर्दी उसे प्रिय थे। दोस्तों के संगत में वो और भी बिगड़ गया था। आये दिन उसकी वजह से कोई न कोई हंगामा घर मे खड़ा हो जाता था। जबान से छाँट-छाँट कर ऐसी गालियां निकालता था की परवरिश शरमा जाए। अट्ठाइस साल का हो गया था पर किसी चीज की परवाह नही थी। मानव की शादी के वक्त अभिनव का बीसवाँ साल चल रहा था अक्षरा और अंतरा को सूक्तिवाक्य कहकर गंदी-गंदी गालियां सिखाने का भी श्रेय उसी को जाता था उन्ही गालियो की वजह से दोनो की जमकर पिटाई हुई थी जो आजतक अपनी पिटाई नही भूली थी। अक्षरा कहती थी ये लाख अच्छा बन जाये मुझसे कभी भी इसको सम्मान नही मिल सकता। जिस रिश्ते मे एकदूसरे के प्रति आदर और स्नेह न हो, वहाँ रिश्ता कैसे जोड़ा जा सकता है? बुरी आदतों और अपने आचरण से वो बड़ो के मन से भी उतर गया था। आठ साल पहले जब रिश्ते की बात हुई थी तब में और अब में काफी परिवर्तन हो चुका था। जो भी परिवर्तन हुआ था लड़कियों के भले के लिये ही हुआ था। अक्षरा ने दसवीं और बारहवीं दोनों कक्षाओं में अपने विद्यालय और परिवार का नाम रौशन किया था। इतने अच्छे अंक देखकर और शिक्षकों की प्रेरणा से पिता ने आगे की पढ़ाई चाचा के घर रखकर ही करवाई। उसकी नैया को दिशा मिलता देख अंतरा ने भी जी जान से मेहनत किया और बिना किसी मदद और कोचिंग के पहली बार मे ही मेडिकल एंट्रेंस (प्रवेश परीक्षा) निकाल लिया। पढ़ाई में जो भी दिक्कतें आती उसे अक्षरा से भरपूर सहयोग मिलता। जगजीवन भी बेटियों के हौसले और छोटे भाई रामसजीवन से सीख लेते हुए अपना हृदय परिवर्तित कर चुके थे। वो अब अपनी दोनों होनहार बेटियों के लिए उनके उपयुक्त ही वर चाहते थे इसलिये लम्बे अरसे से चलती आ रही कुरीति का दामन छोड़ना चाहते थे। इस कुप्रथा को अपने घर से बहिष्कृत करने का मन में निश्चय कर चुके थे। वो किसी भी सूरत में अक्षरा और अंतरा का भविष्य दाँव पर लगाने को नही तैयार थे, चाहे बदले में उन्हें अंकुर के पसंद का ही रिश्ता क्यो न तोड़ना पड़े? वो नही चाहते थे कि उनकी बेटियों को ये प्रथा अपने बंधन में जकड़े। वो उनदोनों को इस बंधन से सदैव के लिए मुक्ति दिलाना चाहते थे। अब वो भलीभांति जान चुके थे पैसों से खुशियाँ नही खरीदी जा सकती। कही न कही बचपन मे बेटियों के प्रति हुए अन्याय की भी भरपाई करना चाहते थे। जब भी स्वरा का मलिन मुख देखते तो अकेले में रोते, यहाँ तक की मालती से भी नही कह पाते थे कि वो अपने ससुराल मे खुश नही है दिनोदिन उनको ये चिंता खाये जा रही थी कि उनकी बड़ी बेटी इस शादी से खुश नही है। वो तो स्वयं को भी अपनी पत्नी के योग्य नही समझते थे। तगड़ा दहेज देकर भी वो बेटी के चेहरे पर मुस्कान नही ला पाये थे। स्वरा को लिखने का बहुत शौक था वो अपने हृदय के उद्गार डायरी के पन्नों पर लिखा करती थी। बच्चों के लड़ाई झगड़े में वो डायरी एकदिन जगजीवन के हाथ लग गई थी। जबतक स्वरा देख पाती उन्होंने कुछ पन्ने पढ़कर काफी जानकारी बटोर ली थी। वो ये जान गये थे कि रिश्ता निभाने का दारोमदार उनकी बेटी पर ही है। वो आठ साल से अपने मुख से किसी के लिए भी एक अपशब्द नही निकाल पायी थी। जगजीवन ने डायरी लौटाते वक्त ऐसे भावप्रकट किये कि स्वरा समझे उन्होंने कुछ भी नही पढ़ा पर स्वरा मन के भावों को भी पढ़ लेती थी उसदिन से उसने लिखना कम कर दिया था।

दिनभर तो स्वरा कमरे मे ही रही, रात को सबका खाना तो बनाना ही था, न चाहते हुए भी रसोई में जाकर सबके लिए खाना बनायी। बच्चों के होमवर्क कराके उन्हें सुला चुकी थी और मानव के आने का इंतजार कर रही थी। वो अक्सर रात नौ के बाद ही आया करते थे। आते ही खाना खाकर सो गए। मानव के आदत मे नही था ये जानने की इच्छा कि उसने खाना खाया भी है या नही।

भाभी हमारे कॉलेज मैगजीन के लिए कुछ अच्छा सा लिख दो, कुछ भी औरतों और बच्चियों पर..... महिला दिवस पर मैगजीन मे छपेगी। सबसे अच्छा लिखनेवाले को पाँच हजार रुपए की इनाम धनराशि भी है। मेरी अच्छी भाभी आप मेरे लिये कुछ लिख दो।

स्वरा अंतर्मुखी थी पर शब्दों मे व्यक्त करना अच्छे से जानती थी, अक्सर अपने मन की व्यथा पन्नो पर लिखा करती थी। अपनी लेखनी से उसने कविताओं का संग्रह बना रखा था उसी में कुछ पंक्तियाँ आज दिन में रोकर लिख रही थी। जब उदास होती तो अभिव्यक्ति और अच्छी तरह से होती थी। वही पंक्तियां मैगजीन के लिए उसने दे दी। मानवी भी खुश हो गई।

वो पंक्तियों कुछ इस प्रकार थी--


ऐसे ही मौन धारण नही करती है लड़कियां,

गुड्डा गुड्डीय्यो के संग खेलने की उम्र मे ब्याही जाती है लड़कियां

लड़को और पुरुषों से प्रेम करने को भी डरने लगती है लड़कियां,

लिंग अनुपात देखकर लगता है अब तो भय, खत्म न हो जाये बेटियाँ,

माँ की कोख में भी सुरक्षित नही होती है बेटियां,

बेटियों के पैदा होते ही कभी जलप्रवाह, तो कभी दफन कर दी जाती है

नालो और गटर के पास खून से लथपथ होती है उनकी बोटियाँ,

फिर खरीद फरोख्त कर कही से लाई जाएंगी बेटियां,

माँ के स्नेह से भी दूर कर दी जाती है बेटियां

इर्दगिर्द के कामातुर पुरूषों को जाने

क्यों चुभने लगती है लड़कियां?


5

अंकुर फोन पर पूछ रहा था "दीदू इसबार राखी के त्यौहार पर क्यों नही आओगी?" इतने जल्दी भाई को भूल गयी हो।

अक्षरा फोन पर उसे समझाने की चेष्टा कर रही थी "अंकुर नोटिस पीरियड चल रहा है, अभी पूरा एक महीना शेष रह गया है मुझे ऐसे मे छुट्टी नही मिल पाएगी।" तुम समझने की कोशिश करो मैं ऐसे मे छुट्टी नही ले सकती। दूसरी कंपनी जॉइन करने से पहले मैं पंद्रह दिन का समय ले रही हूँ तो तुम सब के साथ घर पर समय व्यतीत करूँगी।

अंकुर दुखी हो कह रहा था 'पहली बार ऐसा होगा जब आप रक्षाबंधन पर घर नही आ रही हो।"

"अंकुर दीदू और अंतरा तो होंगी, वो मेरी भी राखी तुम्हें बाँध देंगी।" कहते हुए वो थोड़ा भावुक हो गयी थी।

दूसरी तरफ वो फोन पर बोल रहा था "दीदू इस बार आपका भाई समझदार हो गया है, वो आपको अनचाहे बंधन से मुक्त देखना चाहता है।" आप मेरी चिंता मत करे हम सब ने मिलकर ये निश्चय किया है कि मैं अब मानवी से नही मिलूँगा और उससे सारे नाते खत्म कर दिये है। इस राखी में ये भाई अपनी बहनों के मान-सम्मान को ठेस नही पहुँचने देगा। हमने स्वयं ही ये फैसला किया है मानवी भी आपकी और अंतरा दीदू की खुशी चाहती है। हमेशा बहन ही अपने भाई के लिए त्याग करती आयी है इसबार आपका अंकुर अपनी  दीदू की खुशियों के लिए करेगा।

अक्षरा के आँखों मे आँसू आ गए भाई के पवित्र भावनाओं से द्रवित हो बोली "तुम सचमुच बड़े हो गए हो मेरे भाई।" जिसके पास तुम्हारे जैसा भाई हो उन बहनों का कोई कुछ नही बिगाड़ सकता, फिर दोनो काफी देर फोन पर बात करते रहे। 

रक्षाबन्धन का दिन आ गया था, इसदिन रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है।

ऐसा माना जाता है कि ये भाई बहन को स्नेह के बंधन में बांधती है। रक्षाबंधन के दिन तीनों बहने अंकुर के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती आयी थी पर इसबार स्वरा और अक्षरा दोनों ही राखी पर नही आ सकी। श्रावण पूर्णिमा के दिन तो स्वरा दीदू सुबह ही आ जाया करती थी पर इसबार रिश्ते को लेकर छिड़ी विवाद ने आग में घी का काम किया, मानव जीजू ने आने में अपनी व्यस्तता जताई इसलिए वो भी नही आ पाई। फोन पर मानव ने सूचित कर दिया था इसबार उनके घर मे मेहमानों का आना जाना लगा है अतः वो  लोग नही आ पाएंगे।इधर से भी किसी ने ज्यादा जोर नही दिया, हर कोई चाहता था शांति से ये घड़ी बीत जाए और दोनों परिवारों के बीच ज्यादा मनमुटाव न आये। रक्षाबंधन और भैया दूज ही ऐसे त्यौहार है जो भाई बहन के बीच प्यार और उनके रिश्तों को और भी मजबूत बनाते है।

अंतरा ने ही अपने और दोनों बहनों की तरफ से अंकुर को राखी बांधी थी। प्रत्येक वर्ष बड़े हर्षोल्लास से ये त्यौहार मनाया जाता था, इसबार महज खानापूर्ति रह गई थी। अंतरा भी शाम को होस्टल लौट गई थी जगजीवन और मालती भी बेटियों के नही आ पाने से दुखी थे।

   नमन एक महीने से अक्षरा के वर्ताव से हैरान और परेशान था। उसे समझ में नही आ रहा था कि उससे गलती कहाँ हुई? दोनो साथ अक्सर फिल्म देखने जाया करते थे, कभी देर हो जाता तो उसके पीजी तक छोड़कर भी आता था फिर उसदिन के बर्ताव को किस कैटेगरी में रख सकते थे? अब तो वो बात भी नही करती टीम, ऑफिस सबकुछ तो छोड़कर जा रही है। उसको अक्षरा की कमी खलने लगी थी फिर चाहे ऑफिस कैंटीन में खाना खाने की बात हो, फिल्टर कॉफी पीते वक्त बॉस के डाँट की भड़ास निकालनी हो या टेनिस कोर्ट मे खेलते समय सब जगह उसकी कमी महसूस हो रही थी।

जब वो वहाँ से चली जायेगी तो भुला पाना इतना सहज नही होगा। कईबार मन में आया पूछकर देखे, आखिर इस सबके पीछे वजह क्या है? वो अचानक से उसे क्यों नजरअंदाज करने लगी है?

एक दिन अक्षरा को ऑफिस में काम खत्म करने मे देर हो गयी, उसे बैठा देखकर नमन भी रुक गया, घर नही जा सका। उसको परेशान देखकर उसका काम खत्म कराने में मदद करता रहा। जब वो दोनो ऑफिस से बाहर निकले तो बहुत तेज बारिश हो रही थी अतः ऑफिस कैंटीन में कुछ खाने के लिये अंदर चले आये। कॉफी पीते वक्त नमन ने उससे पूछ ही लिया "आखिर क्या बात है जो तुम मुझसे उखड़ी-उखड़ी रह रही हों?" अब तो कुछ ही दिनों की मेहमान हो यहाँ पर, कौन सी कम्पनी जॉइन कर रही हो?

आज उसका गुस्सा काफूर हो चुका था।

बडी शालीनता से कम्पनी का नाम बताते हुए बोली "अभी बीस दिन बाकी है।"

"यहाँ से जाना इतना जरूरी था क्या?" नमन ने सीधे उसकी आँखों मे झाँकते हुए प्रश्न किया था।

अक्षरा बोली "पैकज अच्छा था 50% हाइक का ऑफर दिया था, मैं सर्विस कम्पनी के लिए काम करके थक गयी हूँ इसलिये प्रोडक्ट कंपनी जॉइन करना चाहती थी।"

नमन बोल रहा था "अच्छा निर्णय है ग्रोथ और हाइक तो सभी को चाहिए होती है वरना काम में मन नही लगता, एक नीरसता आ जाती है।"

मुझे लग रहा था तुम मुझसे दूर जाने के लिए ये कम्पनी छोड़ रही हो। मेरे साथ पॉपकॉर्न खाने से तुम्हें डर जो लगने लगा है। 

अक्षरा ने इसबार सीधे शब्दों में उससे कहा "मैं तुमसे नही खुद से भाग रही हूँ।" डर है मुझे कही इनसब चीजों की आदत न हो जाये।

नमन ने कहा "अगर आदत अच्छी हो तो परहेज नही करनी चाहिए।" अब देखो न मुझे भी तुम्हारी आदत हो गयी है, मैं तो इसी बात से परेशान हो जाता हूँ कि कल तुम चली जाओगी तो मैं यहाँ काम कैसे करूँगा?

मेरे बिना रहने की तुम्हें धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी। कोई और नया इंसान तुम्हारी जिंदगी में आ जायेगा विकल्प बनकर खुद को स्थापित करने, कोई जगह ज्यादा दिन रिक्त नही रहती। कम्पनी ने भी अभी तक मेरा विकल्प ढूँढ लिया होगा।

"दिल मेरा और दर्द तेरा, कुछ तो दोनो के हिस्से में बराबर आता"

नमन ने कहा "दिल जोड़ने के लिए भी कोई तो हो, मुझे तो तन्हाई रास नही आती।"

दिल तोड़ना सीख लोगे तो तन्हाई भी रास आने लगेगी। अक्षरा ने प्रतियुत्तर किया।

नमन बोला "लोगों को एकांत रास आने लगा है, देखो न किस कदर तन्हाई उनपर हावी हो रही है। इससे पहले की तन्हाई हमपर भी पैर जमाये, चलो कही भाग चलते है। चलो न कोई फिल्म देखने चले। 

अक्षरा ने उससे एकसाथ बहुत प्रश्न पूछ लिये- आज जब प्यार के रिश्ते दम तोड़ते नजर आ रहे है तो जबरन थोपे रिश्तों की उम्र कितनी होगी? रिश्तों के न निभ पाने की वजह क्या होती है? रिश्ते अपेक्षा के शिकार होते है या उपेक्षा के?

नमन बोल रहा था "तुम्हारे इतने सारे सवालो के जवाब ढूँढने के लिए एक फिल्म तो देखना बनता है, पॉपकॉर्न खाते खाते हल भी मिल जायेगा।" चलो अक्षरा एकबार फिर उन लम्हो को जी ले। ये बरसात मौका भी दे रही है, सामने मॉल है अभी भी हम दस बजे का शो देख सकते है, तबतक बारिश भी थम जाएगी और मैं तुम्हें पीजी छोड़ आऊँगा।

जबरन थोपे रिश्तों से बाहर निकलो, जब आपस में अहम टकराते है तो प्यार के लिए गुंजाइश नही बचती। अहम और वहम दोनो साथ नही चल सकते।

जब लोग रिश्तों में कोशिश करना बंद कर देते है और अपने अभिमान को स्वाभिमान समझने की भूल कर बैठते है तो सुधार की कोई गुंजाइश नही रह जाती, वही से अपेक्षा बढ़ जाती है। रिश्ते स्वतः ही बेमौत मरने लगते है बस एहसास थोड़ी देर से होता है। 

    मैं करियर को लेकर आत्मकेंद्रित हो गया था, तुम किन परिस्थितियों से गुजर रही हो ख्याल ही नही रहा। तुम्हारे जाने के दिन जैसे नजदीक आ रहे मेरी बेचैनी का बढ़ जाना स्वाभाविक है। तुम्हारे बगैर जिंदगी गुजारने का सोच भी नही सकता, भरोसा रखो आगे की बात पॉपकॉर्न खाकर भी कर सकते है।

मैने एक महीने से ठीक से खाना भी नही खाया है, तुमसे बात करते भी डर लगने लगा था। 

माँ पापा रविवार को बैंगलोर आ रहे है तुम एकबार मिल लो फिर जैसा चाहोगी आगे का प्लान उसी के हिसाब से कर लेंगे। मेरे ख्याल से कोर्ट मैरिज करके बताना सही रहेगा ताकि कोई अड़चन न आये, फिर घरवालों की खुशी के खातिर उनके मन मुताबिक भी शादी कर लेंगे। 


6

अंकुर फोन पर पूछ रहा था "दीदू इसबार राखी के त्यौहार पर क्यों नही आओगी?" इतने जल्दी भाई को भूल गयी हो।

अक्षरा फोन पर उसे समझाने की चेष्टा कर रही थी "अंकुर नोटिस पीरियड चल रहा है, अभी पूरा एक महीना शेष रह गया है मुझे ऐसे मे छुट्टी नही मिल पाएगी।" तुम समझने की कोशिश करो मैं ऐसे मे छुट्टी नही ले सकती। दूसरी कंपनी जॉइन करने से पहले मैं पंद्रह दिन का समय ले रही हूँ तो तुम सब के साथ घर पर समय व्यतीत करूँगी।

अंकुर दुखी हो कह रहा था 'पहली बार ऐसा होगा जब आप रक्षाबंधन पर घर नही आ रही हो।"

"अंकुर दीदू और अंतरा तो होंगी, वो मेरी भी राखी तुम्हें बाँध देंगी।" कहते हुए वो थोड़ा भावुक हो गयी थी।

दूसरी तरफ वो फोन पर बोल रहा था "दीदू इस बार आपका भाई समझदार हो गया है, वो आपको अनचाहे बंधन से मुक्त देखना चाहता है।" आप मेरी चिंता मत करे हम सब ने मिलकर ये निश्चय किया है कि मैं अब मानवी से नही मिलूँगा और उससे सारे नाते खत्म कर दिये है। इस राखी में ये भाई अपनी बहनों के मान-सम्मान को ठेस नही पहुँचने देगा। हमने स्वयं ही ये फैसला किया है मानवी भी आपकी और अंतरा दीदू की खुशी चाहती है। हमेशा बहन ही अपने भाई के लिए त्याग करती आयी है इसबार आपका अंकुर अपनी  दीदू की खुशियों के लिए करेगा।

अक्षरा के आँखों मे आँसू आ गए भाई के पवित्र भावनाओं से द्रवित हो बोली "तुम सचमुच बड़े हो गए हो मेरे भाई।" जिसके पास तुम्हारे जैसा भाई हो उन बहनों का कोई कुछ नही बिगाड़ सकता, फिर दोनो काफी देर फोन पर बात करते रहे। 

रक्षाबन्धन का दिन आ गया था, इसदिन रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है।

ऐसा माना जाता है कि ये भाई बहन को स्नेह के बंधन में बांधती है। रक्षाबंधन के दिन तीनों बहने अंकुर के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती आयी थी पर इसबार स्वरा और अक्षरा दोनों ही राखी पर नही आ सकी। श्रावण पूर्णिमा के दिन तो स्वरा दीदू सुबह ही आ जाया करती थी पर इसबार रिश्ते को लेकर छिड़ी विवाद ने आग में घी का काम किया, मानव जीजू ने आने में अपनी व्यस्तता जताई इसलिए वो भी नही आ पाई। फोन पर मानव ने सूचित कर दिया था इसबार उनके घर मे मेहमानों का आना जाना लगा है अतः वो  लोग नही आ पाएंगे।इधर से भी किसी ने ज्यादा जोर नही दिया, हर कोई चाहता था शांति से ये घड़ी बीत जाए और दोनों परिवारों के बीच ज्यादा मनमुटाव न आये। रक्षाबंधन और भैया दूज ही ऐसे त्यौहार है जो भाई बहन के बीच प्यार और उनके रिश्तों को और भी मजबूत बनाते है।

अंतरा ने ही अपने और दोनों बहनों की तरफ से अंकुर को राखी बांधी थी। प्रत्येक वर्ष बड़े हर्षोल्लास से ये त्यौहार मनाया जाता था, इसबार महज खानापूर्ति रह गई थी। अंतरा भी शाम को होस्टल लौट गई थी जगजीवन और मालती भी बेटियों के नही आ पाने से दुखी थे।

 नमन एक महीने से अक्षरा के वर्ताव से हैरान और परेशान था। उसे समझ में नही आ रहा था कि उससे गलती कहाँ हुई? दोनो साथ अक्सर फिल्म देखने जाया करते थे, कभी देर हो जाता तो उसके पीजी तक छोड़कर भी आता था फिर उसदिन के बर्ताव को किस कैटेगरी में रख सकते थे? अब तो वो बात भी नही करती टीम, ऑफिस सबकुछ तो छोड़कर जा रही है। उसको अक्षरा की कमी खलने लगी थी फिर चाहे ऑफिस कैंटीन में खाना खाने की बात हो, फिल्टर कॉफी पीते वक्त बॉस के डाँट की भड़ास निकालनी हो या टेनिस कोर्ट मे खेलते समय सब जगह उसकी कमी महसूस हो रही थी।

जब वो वहाँ से चली जायेगी तो भुला पाना इतना सहज नही होगा। कईबार मन में आया पूछकर देखे, आखिर इस सबके पीछे वजह क्या है? वो अचानक से उसे क्यों नजरअंदाज करने लगी है?

एक दिन अक्षरा को ऑफिस में काम खत्म करने मे देर हो गयी, उसे बैठा देखकर नमन भी रुक गया, घर नही जा सका। उसको परेशान देखकर उसका काम खत्म कराने में मदद करता रहा। जब वो दोनो ऑफिस से बाहर निकले तो बहुत तेज बारिश हो रही थी अतः ऑफिस कैंटीन में कुछ खाने के लिये अंदर चले आये। कॉफी पीते वक्त नमन ने उससे पूछ ही लिया "आखिर क्या बात है जो तुम मुझसे उखड़ी-उखड़ी रह रही हों?" अब तो कुछ ही दिनों की मेहमान हो यहाँ पर, कौन सी कम्पनी जॉइन कर रही हो?

आज उसका गुस्सा काफूर हो चुका था।

बडी शालीनता से कम्पनी का नाम बताते हुए बोली "अभी बीस दिन बाकी है।"

"यहाँ से जाना इतना जरूरी था क्या?" नमन ने सीधे उसकी आँखों मे झाँकते हुए प्रश्न किया था।

अक्षरा बोली "पैकज अच्छा था 50% हाइक का ऑफर दिया था, मैं सर्विस कम्पनी के लिए काम करके थक गयी हूँ इसलिये प्रोडक्ट कंपनी जॉइन करना चाहती थी।"

नमन बोल रहा था "अच्छा निर्णय है ग्रोथ और हाइक तो सभी को चाहिए होती है वरना काम में मन नही लगता, एक नीरसता आ जाती है।"

मुझे लग रहा था तुम मुझसे दूर जाने के लिए ये कम्पनी छोड़ रही हो। मेरे साथ पॉपकॉर्न खाने से तुम्हें डर जो लगने लगा है। 

अक्षरा ने इसबार सीधे शब्दों में उससे कहा "मैं तुमसे नही खुद से भाग रही हूँ।" डर है मुझे कही इनसब चीजों की आदत न हो जाये।

नमन ने कहा "अगर आदत अच्छी हो तो परहेज नही करनी चाहिए।" अब देखो न मुझे भी तुम्हारी आदत हो गयी है, मैं तो इसी बात से परेशान हो जाता हूँ कि कल तुम चली जाओगी तो मैं यहाँ काम कैसे करूँगा?

मेरे बिना रहने की तुम्हें धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी। कोई और नया इंसान तुम्हारी जिंदगी में आ जायेगा विकल्प बनकर खुद को स्थापित करने, कोई जगह ज्यादा दिन रिक्त नही रहती। कम्पनी ने भी अभी तक मेरा विकल्प ढूँढ लिया होगा।

"दिल मेरा और दर्द तेरा, कुछ तो दोनो के हिस्से में बराबर आता"

नमन ने कहा "दिल जोड़ने के लिए भी कोई तो हो, मुझे तो तन्हाई रास नही आती।"

दिल तोड़ना सीख लोगे तो तन्हाई भी रास आने लगेगी। अक्षरा ने प्रतियुत्तर किया।

नमन बोला "लोगों को एकांत रास आने लगा है, देखो न किस कदर तन्हाई उनपर हावी हो रही है। इससे पहले की तन्हाई हमपर भी पैर जमाये, चलो कही भाग चलते है। चलो न कोई फिल्म देखने चले। 

अक्षरा ने उससे एकसाथ बहुत प्रश्न पूछ लिये- आज जब प्यार के रिश्ते दम तोड़ते नजर आ रहे है तो जबरन थोपे रिश्तों की उम्र कितनी होगी? रिश्तों के न निभ पाने की वजह क्या होती है? रिश्ते अपेक्षा के शिकार होते है या उपेक्षा के?

नमन बोल रहा था "तुम्हारे इतने सारे सवालो के जवाब ढूँढने के लिए एक फिल्म तो देखना बनता है, पॉपकॉर्न खाते खाते हल भी मिल जायेगा।" चलो अक्षरा एकबार फिर उन लम्हो को जी ले। ये बरसात मौका भी दे रही है, सामने मॉल है अभी भी हम दस बजे का शो देख सकते है, तबतक बारिश भी थम जाएगी और मैं तुम्हें पीजी छोड़ आऊँगा।

जबरन थोपे रिश्तों से बाहर निकलो, जब आपस में अहम टकराते है तो प्यार के लिए गुंजाइश नही बचती। अहम और वहम दोनो साथ नही चल सकते।

जब लोग रिश्तों में कोशिश करना बंद कर देते है और अपने अभिमान को स्वाभिमान समझने की भूल कर बैठते है तो सुधार की कोई गुंजाइश नही रह जाती, वही से अपेक्षा बढ़ जाती है। रिश्ते स्वतः ही बेमौत मरने लगते है बस एहसास थोड़ी देर से होता है। 

    मैं करियर को लेकर आत्मकेंद्रित हो गया था, तुम किन परिस्थितियों से गुजर रही हो ख्याल ही नही रहा। तुम्हारे जाने के दिन जैसे नजदीक आ रहे मेरी बेचैनी का बढ़ जाना स्वाभाविक है। तुम्हारे बगैर जिंदगी गुजारने का सोच भी नही सकता, भरोसा रखो आगे की बात पॉपकॉर्न खाकर भी कर सकते है।

मैने एक महीने से ठीक से खाना भी नही खाया है, तुमसे बात करते भी डर लगने लगा था। 

माँ पापा रविवार को बैंगलोर आ रहे है तुम एकबार मिल लो फिर जैसा चाहोगी आगे का प्लान उसी के हिसाब से कर लेंगे। मेरे ख्याल से कोर्ट मैरिज करके बताना सही रहेगा ताकि कोई अड़चन न आये, फिर घरवालों की खुशी के खातिर उनके मन मुताबिक भी शादी कर लेंगे। 

7


अक्षरा खुश थी कि नमन भी उसके लिए वैसा ही अनुभूति रखता है। ये बात जब उसने अपनी बहनों को बताई तो वो दोनों भी उसके लिए बहुत खुश थी।

नमन के माँ बाप को भी अक्षरा पसंद आ गयी और दोनों ने एक महीने के अंदर ही कोर्ट मैरिज कर लिया। इधर उसका नोटिस पीरियड भी खत्म हो गया, नई कम्पनी जॉइन करने से पहले वो राजस्थान अपने घर चली गयी। जब उसने कोर्ट मैरिज के बारे मे सबको अवगत कराया तो सभी का चेहरा खुशी से खिल उठा। घर में सभी अक्षरा की नई जिंदगी के शुरुआत से खुश थे। स्वरा ने भी ये खबर अपने तक ही सीमित रखी वो नही चाहती थी कि इसकी भनक भी उसके ससुराल में पड़े। उसे मानव और अभिनव के प्रतिक्रिया से डर लग रहा था, वो ये जानती थी कि मानव उसके परिवार को तो कोई नुकसान नही पहुँचायेगा पर उसे मानसिक आघात पहुँचा सकता है जिसके लिये वो स्वयं को तैयार कर रही थी।

   इधर मानव का रवैया दिन प्रतिदिन उसके प्रति खराब होता जा रहा था, किसी भी सवाल का बड़ी बेरुखी से जवाब देता अक्सर आधी रात के बाद ही घर में दाखिल होता। किसी दिन खाना खाता तो, किसी दिन नही खाता और चुपचाप बिस्तर पर जाकर सो जाता। स्वरा और उसके बीच बहुत कम संवाद होती, ज्यादा की संभावना भी नही थी वो तो बात करने से भी डरती थी। एक ही छत के नीचे दोनो अजनबी की तरह रहते थे। मानव के रवैये ने धीरे-धीरे दोनों के रिश्ते में और दरार डाल दिया। अक्षरा की शादी का पता चलते ही वो आपे से बाहर हो गया था गुस्से में स्वरा और बच्चों को उसके मायके छोड़ आने की धमकी भी दे डाली थी बड़ी मुश्किल से मानवी ने समझा बुझाकर उसका गुस्सा शांत किया था। 

    अक्षरा की जब एकसाल बाद घरवालों ने धूमधाम से नमन से शादी की तो मानव के परिवार से कोई भी शादी में शामिल नही हुआ। अभिनव अलग जला-भुना बैठा था इसलिए बड़े भाई को रोकने का कोई प्रयास नही किया। उसके गुस्से की वजह से स्वरा भी बहन की शादी में उपस्थिति नही दर्ज करा सकी। उसने भी कोई प्रतिवाद नही किया बस चाहती थी कि मानव का गुस्सा किसी तरह शांत हो जाये। मानव के अभिमान को ठेस पहुँचा था वो इतने जल्दी भूलने वालों में से नही था। उसका बदला उसने स्वरा से लेने की ठान ली थी और जानबूझकर उसे अलग-अलग हथकंडे अपना कर परेशान करने लगा। मायके से उसका बात करना तक बंद करा दिया, जिसके कारण वो और तनाव में रहने लगी। उसे रह-रहकर बुरे सपने आने लगे। एकरात वो पसीने से तरबतर उठी उसे आभास हुआ कुछ काली आकृतियां उसकी तरफ बढ़ रही है और गला दबाने की चेष्टा कर रही है वो सभी उसके दोनों बच्चों को छीन लेना चाहती है। पहले उसे लगा कि वो स्वप्न देख रही है पर वो सच प्रतीत हो रहा था। उसने अपना गला छुड़ाने के लिए हाथ उठाना चाहा पर हाथ नही उठे, आवाज निकालनी चाही मुँह नही खोल पायी। सहसा मन में ही हनुमान चालीसा पढ़ने लगी तो कुछ ही छणों में वो आकृतियां गायब हो गई इसके पश्चात उसके आँखो में फिर रात भर नींद नही आयी।

अक्सर रात में वो डरावने सपने देखने लगी थी। एकरात में उसे आभास हुआ कि कोई काला साया उसके ऊपर बैठा है और उसे दबाकर मारना चाहता है। डर के मारे उसका हाल बुरा था उसने रात में सोना बंद कर दिया। वो पूरीरात कमरे में रोशनी रखती, अंधेरे में उसे डर लगने लगा था। गुस्से में मानव ने उसे कमरे से निकाल दिया पर उसकी मनोदशा पर एकबार भी विचार नही किया। मानव उसकी स्थिति का मजाक उड़ाता उसके लिये वो महज हँसी का पात्र मात्र रह गयी थी। काफी दिनों से रात में जागने और दिनभर काम करने से उसकी स्थिति और दयनीय होने लगी थी। उसे नींद पक्षाघात (स्लीप पैरालिसिस) की जटिलताओ ने घेर लिया था। जब इंसान बहुत अधिक स्ट्रेस में हो या बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित हो तब स्लीप पैरालिसिस जैसी समस्या हो जाती है, परंतु वो अपनी इस बीमारी की समस्या से अनभिज्ञ थी।

वो पिछले दो महीनों से पर्याप्त नींद नही ले पा रही थी जिसके कारण लंबे समय तक थकान रहने लगा अक्सर रात के समय बुरे व डरावने सपने आने लगें

बार-बार स्लीप पैरालिसिस होने लगा, स्थिति बेकाबू होने लगती, वो बोलने और अपने शरीर को हिलाने में असमर्थ होती, हमेशा नकारात्मक विचार मन में आने लगे। उसे लगता कि कमरे में कोई अनजान व्यक्ति है। अकसर छाती और गले में दवाब और घुटन महसूस होता, अपने मन मस्तिष्क में किसी काले साये को देखकर डर जाना अब आम बात हो गई थी।

नींद पक्षाघात (स्लीप पैरालिसिस) के दौरान उसे बोलने में दिक्कत आती, वो कुछ बोल नहीं पाती थी। अपनी गर्दन को सीधा करने की कोशिश करती थी लेकिन कर नहीं पाती थी। कच्ची नींद में उसे भूत प्रेत दिखते थे और वो चिल्ला भी नही पाती थी। किसी किसी दिन पूरे शरीर में ही ऐसा अनुभव होता और उसका शरीर बिल्कुल हिल नहीं पाता था, जबकि वो अपने शरीर को हिलाने-डुलाने की पूरी कोशिश कर रही होती थी। इस दौरान उसको हैलुसिनेशन्स होते थे। जो चीजें नहीं हैं उनके होने का आभास होता या किसी अजीब तरह की ध्वनि सुनाई देती। दिनोंदिन उसे एंग्जाइटी रहने लगी और अजीब आवाज सुनाई देने लगी। वो चाहकर भी शरीर को हिलाने की स्थिति में नही रहती।

एकदिन उसने माँ को ये सब बाते फोन पर बतायी तो मालती देवी को लगा उनकी बेटी को भूत-प्रेत पकड़ लिया है और इसके इलाज के लिए वो बेटी को अपने घर बुलवाकर झाड़-फूंक करवाने लगी।

अंतरा वीकेंड में आयी तो उसे पता चला कि माँ उसकी दीदू का झाड़-फूंक करवा रही है। पता चलते ही वो आगबबूला हो उठी "आप लोगो ने मुझे बताने की जरूरत नही समझी खुद ही तंत्र मंत्र में जुट गए।" दीदू के हाथ, पैर, कमर सब जगह तो आपने ताबीज बँधवा रखी है। माँ आप एक बार मेरे से पूछ तो लेती तीसरा साल मेरा एमबीबीएस का चल रहा है, अच्छी खासी जानकारी रखती हूँ।

दीदू आप भी माँ की बातों में आकर कुछ भी करवाने लगती हो, कम से कम आप ने मुझे तो बताया होता।

मुझे मालूम है माँ ने ही आपको बताने से मना किया होगा। आप मेरे साथ अभी तुरंत एक अच्छे साइकेट्रिस्ट के पास मिलने चलिये। आज से कोई झाड़- फूँक और दुआ नही होगी।

मालती देवी बोली "अंतरा हमारी स्वरा कोई पागल नही है जो उसे हम साइकेट्रिस्ट के पास लेकर जाये।"

अंतरा ने कहा "माँ आपको गलतफहमी है कि साइकेट्रिस्ट पागलों का इलाज करते है।" आजकल बढ़ते तनाव, अवसाद, एंग्जायटी और स्लीप पैरालिसिस भी एक आमबात हो गयी है साइकेट्रिस्ट से मिलने की।

जब किसी को नींद में भूत-प्रेत दिखने और हिलने-डुलने में समस्या होती है तो इसे ऊपरी हवा और झाड़-फूंक से जोड़कर देखा जाता है। जबकि यह है मानसिक समस्या है। इसका सही इलाज मनोचिकित्सक द्वारा किया जा सकता है। इसलिए बिना देर किए किसी भी सायकाइट्रिस्ट से मिलकर इलाज कराना उचित है।

अंतरा दीदू को अपने ही मेडिकल कॉलेज के जाने माने साइकेट्रिस्ट डॉक्टर सुदीप जोशी के पास ले गयी।

डॉक्टर ने दोनों को समझाया कि कैसे नींद पक्षाघात (स्लीप पैरालिसिस) के कारण नींद में जागते हुए भी बिस्तर से लोग नही उठ पाते। इस दौरान व्यक्ति कॉन्शस तो होता है लेकिन चाहकर भी अपने शरीर को सक्रिय (ऐक्टिव) नहीं कर पाता है। वह अपने हाथ और पैर को हिलाने की कोशिश करता है लेकिन ऐसा नहीं कर पाता। वह मूवमेंट करने की कोशिश करता है लेकिन उसका शरीर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं देता है। इस स्थिति में व्यक्ति को सबकुछ समझ आ रहा होता है, वह अनुभव भी कर पाता है कि उसके साथ क्या हो रहा है लेकिन अपनी समस्या को दूर करने की उसकी हर कोशिश नाकाम रहती है। ऐसी स्थिति में लोग डर और भय के माहौल में जीवन जीने लगते हैं। इसके चलते स्लीप पैरालिसिस का दौरा पड़ने लगता है। अगर आप अपनी जीवन शैली में सुधार करते हैं। पर्याप्त नींद लेते हैं और तनाव से दूर रहते हैं तो आप इससे छुटकारा पा सकते हैं।

अंतरा ने डॉक्टर से कहा "कि दीदू को विस्तृत रूप में इस बीमारी के बारे मे जानकारी और परामर्श दे।"

डॉक्टर सुदीप जोशी उसे समझाने लगे

हमारा शरीर इसलिए नहीं हिलता क्योंकि हम दो चरणों के बीच नींद लेते हैं। पहला नॉन रैपिड आई मूवमेंट (NREM) और दूसरा रैपिड आई मूवमेंट (REM)। जब हम दूसरे चरण में पहुंचते हैं, तो नींद गहरी होती है और इसी के साथ बंद आंखें भी तेजी से मूवमेंट करती हैं। इसी दौरान दिमाग शरीर को शिथिल कर देता है। इससे हम गहरी नींद में सपने देखते हुए उन पर प्रतिक्रिया नही दे पाते।

वह मूवमेंट करने की कोशिश करता है लेकिन उसका शरीर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं देता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है, जब व्यक्ति को सबकुछ समझ आ रहा होता है, वह अनुभव कर पाता है कि उसके साथ क्या हो रहा है। लेकिन अपनी समस्या को दूर करने की उसकी हर कोशिश नाकाम रहती है।

कई बार कुछ सेकेंड के लिए हल्की नींद टूट जाती है पर शरीर शिथिल रहता है। कई बार लोग इस दौरान मतिभ्रम का शिकार भी हो जाते हैं। वह भूत या कुछ ऐसी चीजें देखने की बात करते हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता।

डॉक्टर वीडियो और कुछ डॉक्यूमेंट्री मूवी के जरिए स्वरा को ये समझाने में सफल हो जाते है कि उसे किसी भूत-प्रेत ने नही पकड़ रखा है।

अंतरा ने डॉक्टर के समक्ष कृतज्ञता जाहिर की जो उसकी दीदू को बड़ी मसक्कत के बाद समझाने में सफल हुए थे। उन्होंने अंतरा को समझाया इनका अच्छे से नींद लेना बहुत जरूरी है और सोने और जागने का एक नियमित समय होना चाहिए। इनको अत्यधिक सोच से बचकर रहना होगा। इन्हें कोई चिंता परेशान कर रही है तो उससे दूर करने में मदद करे। आपकी दीदू को शारीरिक और मानसिक थकान दोनों से बचने की जरूरत है। इनको दिमाग (ब्रेन) और शरीर (बॉडी) के बीच संतुलन बनाना है। इस दौरान ना तो इंसान पूरी तरह जगा हुआ होता है और ना ही पूरी तरह सोया हुआ इसलिए दिमाग और शरीर एक-दूसरे का साथ नहीं दे रहे होते हैं।

डॉक्टर सुदीप जोशी ने कुछ मरीजो के केस हिस्ट्री के बारे मे अंतरा को जानकारी दी और इसके पीछे क्या मानसिक वेदना वो झेल रहे थे इस पर भी विस्तार में जानकारी दी।

आपकी दीदी भी अपनी पारिवारिक उलझनों और पति के असामान्य व्यवहार से परेशान है। डॉक्टर के बार-बार आग्रह करने पर उसने अपनी असफल वैवाहिक जीवन का राज खोलकर रख दिया था सिर्फ सुदीप के इस भरोसे पर कि वो उसके परिवार के किसी भी सदस्य के समक्ष ये राज नही खोलेगा। वो अपने शादी की असफलता उन सब पर जाहिर नही होने देना चाहती थी। उसे बस इतना मालूम था कि मानव अपने ऑफिस की एक सहयोगी के साथ प्रेम प्रसंग में लिप्त है। पहले उसे इस बात की सिर्फ भनक थी लेकिन एकदिन उसने खुद इस बात को स्वीकार कर लिया। वो स्वरा को तलाक देकर सहयोगी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहता था। स्वरा किसी नतीजे पर नही पहुँच पायी थी कि वो क्या निर्णय ले? अपने बच्चों का हित सोचकर दस साल की वैवाहिक जिंदगी पर तलाक का बदनुमा दाग नही लगाना चाहती थी। उसकी एक और चिंता ये भी थी कि वो अपने मायके में किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। 

स्वरा ने प्रतिवाद किया "डॉक्टर कोई जान बूझकर ऐसा नही करता, जब आप अपना सौ फीसदी अपने घर परिवार को दे और वो लोग आपकी अवहेलना करे तो मन बहुत खिन्न हो जाता है। बात-बात पर आप नजरअंदाज कर दिए जाए तो अपनो की उपेक्षा मन को चुभती है, कही न कही वो बातें मन मे घर कर जाती है जिन्हें चाहते हुए भी भूलना आसान नही होता है। 

डॉक्टर ने कहा "क्यो किसी से भी अपेक्षा रखना?" अत्याधिक अपेक्षा ही उपेक्षा का कारण होता है। जरूरत से ज्यादा भाव किसी के लिए न रखें। हम जिन रिश्तों को जितना टूटकर चाहते है वो रिश्ते हमे उतना ही तोड़कर अंदर से खोखला कर जाते है।

स्वरा बोली "डॉक्टर जीते जी मक्खी नही निगली जाती। आप पुरुष है इसलिए इन बातों को इतनी आसानी से कह ले रहे है, क्योंकि आप लोग भावनात्मक लगाव नही रखते।"

डॉक्टर बोले "परुषों में भी भावनाएं प्रबल होती है, हम सहानुभूति का दिखावा और झूठा दावा तो नही करते। तकलीफ हमे भी होती, हम भी दर्द से कराहते है। जब पीड़ा अत्याधिक होती है तो हमारे आँखो से भी आँसू बहते है।

मनोवैज्ञानिक दावा करते है कि रो लेने से गम का बोझ हल्का हो जाता है, जो रो सकता है वो बहुत मजबूत होता है।

मरे हुए लोगों के साथ नही मरा जाता, अपने खातिर जीना पड़ता है। मैने भी अपना पूरा परिवार एक हादसे में खोया है। एक समय लगता था संभलना बहुत मुश्किल है, फिर मेरी गाड़ी कभी पटरी पर नही आएगी। मैंने अपना मन इधर-उधर भटकाने की अपेक्षा लोगो के उपचार (हील) करने मे लगाया। मैने अपनी सोच को एक सकारात्मक दिशा देते हुए लोगों के दर्द का इलाज करने में लगाया। मैं प्रत्येक रविवार को गाँवो में निशुल्क सेवा देता हूँ, गरीबो का मुफ्त में इलाज करता हूँ।

तुम अंतरा की बड़ी बहन हो यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ। मुझे भी एक असिस्टेंट की जरूरत है जो मेरे अस्पताल के कामों में मेरी मदद कर सके लोगो की वेदना को समझ सके। मेरे खयाल से तुम ये काम मन लगाकर कर सकोगी। स्वयं को साबित भी कर सकोगी। अपनी जिंदगी को एक नयी दिशा दे सकोगी फिर आगे के निर्णय लेने में भी तुम्हें आसानी हो जाएगी। हमारे देश मे ज्यादातर महिलाएं सिर्फ इसलिए अत्याचार और बर्बरता बर्दाश्त करती है क्योकि वो आत्मनिर्भर नही है।

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स्वरा ने धीरे से बोला डॉक्टर "जो लोग मर जाते है उनसे कोई अपेक्षा नही रह जाती इसलिए भूलना ही पड़ता है पर जिंदा लोगो को भुलाना और उनकी उपेक्षा बर्दाश्त करना सहज नही होता है।  

डॉक्टर बोले "दुनिया में बहुत सारे लोग है जिनका दर्द बॉटने वाला कोई नही है उनके दर्द को बॉटने की कोशिश करता हूँ।" आपकी तरह निराश होकर बैठ जाता और किस्मत पर रोता रहता तो दूसरों को दर्द और भय से छुटकारा  कैसे दिला पाता? मुझे दूसरा तरीका ज्यादा अच्छा लगा जिसमें मैं समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभा सकता था। ये जीवन बहुत बहुमूल्य है इसे किसी अच्छे कर्म में लगाइये, कुछ नही तो अपने पुराने शौक ही पूरा कर लीजिये। मन भी बहल जाएगा और जीने की कोई वजह भी मिल जाएगी। इसे यूँ ही व्यर्थ में मत गवाइये यही मेरा आपको सलाह है अच्छा लगे तो इसपर अमल जरूर करें।

   डॉक्टर आगे कह रहे थे "मुझे आप की बातों से समझ में आया है कि ये अपने लिये नही अपितु परिवार के लिये ज्यादा जी रही है।" इनको अपने लिये जीने की लालसा जागृत करनी पड़ेगी। मैं कुछ दवाएं लिख दे रहा हूँ जिसका नियम से इनको सेवन करना पड़ेगा यदि हो सके तो उन्हें तनावपूर्ण वातावरण से दूर रखें। चिंता किसी भी समस्या का निदान नही है ये बात इन्हें अच्छे से समझाइए। ज्यादा चिंता से इनकी स्थिति और जटिल होती जाएगी।

वो स्वरा को बहुत अच्छे से समझाते रहे अगर आप अपनी जीवन शैली में सुधार लायेंगी, पर्याप्त नींद लेंगी और तनाव से दूर रहने की भरसक कोशिश करेंगी तो शीघ्र ही इससे छुटकारा पा सकेंगी।

  चूंकि अंतरा भी उसी मेडिकल कॉलेज से पढ़ रही थी डॉक्टर ने उसे पूरी विस्तृत जानकारी दी। डॉक्टर उनदोनों को समझाते रहे अत्याधिक सोच से बचने के लिए किसी पुराने शौक को पुनः जीवित करें उसमें मन लगाये और उसे पूरा करे। चिंता चिता समान होती है जितने जल्दी हो सके अपनी जिंदगी से उसकी छुट्टी कर दे।

डॉक्टर की सलाह और दवाओं ने असर दिखाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे स्वरा की जिंदगी भी पटरी पर आने लगी। अब वो अपना खाली समय लिखने में व्यतीत करने लगी और लोगो को उसकी लिखी कहानियां भी पसंद आने लगी। उसकी आवाज और भाषा शैली बहुत अच्छी थी अतः डॉक्टर सुदीप ने उसे यूट्यूब चैनल पर स्टोरी सुनाने (नैरेशन) का सुझाव दिया। किस्मत ने भी उसका इसबार साथ निभाया और उसका चैनल बहुत सफल हो गया जिसपर लोगों के बहुत अच्छे व्यूज आने लगे और वो वहाँ पर अपनी लिखी कहानियां सुनाने (नैरेट) लगी। वो डॉक्टर जोशी से प्रेरित होकर उनके काम में मदद करने लगी। लोगों के बीच में जाने पर उसे उनके तमाम दुख, दर्द और वेदना को समझने और उनको हील (उपचार) करने का मौका मिला जिन्हें शब्दों की मोतियों में पिरोकर उसने बहुत सारी सुंदर कहानियो की माला बना डाली। अब उसे भी जीने का उद्देश्य मिल गया था अतः अपना जीवन व्यर्थ नही लगता था।

स्वरा ने अभी सफलता का स्वाद चखना शुरू ही किया था कि मानवी का फोन आया "भाभी घर पर आ जाओ, मुझे आपकी बहुत जरूरत है भैया ने लड़केवालों को मुझे देखने के लिए बुलाया है।"

स्वरा बोली "मैं वहाँ नही आना चाहती मानवी, बहुत मुश्किल से अतीत से पीछा छुड़ा रही हूँ, वहाँ आकर डर है मैं फिर उसी स्थिति मे न पहुच जाऊ।"

मानवी फोन पर बोल रही थी "भाभी मुझे सिर्फ आप पर भरोसा है, आप मेरे साथ रहेंगी तो मेरे साथ कुछ भी बुरा नही होगा।" आपको यहाँ से गये पूरे छह महीने हो गए है। भैया तो अक्सर घर ही नही आते है, हमारी पूछने की हिम्मत ही नही होती है।

स्वरा ने इसबार पूरी हिम्मत बटोरकर उसे बता दिया " तुम्हारे भैया मुझसे तलाक चाहते है, वो अपनी एक सहयोगी के साथ 'लिव इन' मे है।"

मेरे वहाँ आने पर उन्हें अच्छा नही लगेगा। मुझे डर है कुछ भी गड़बड़ हुआ तो उसका ठीकरा मुझपर फोड़ दिया जायेगा जो मैं किसी भी सूरत में नही सहन कर सकती। इन छह महीनों ने मुझे पूर्णतया बदलकर रख दिया है अब मेरी सहनशीलता खत्म हो चुकी है।

मानवी उसे अपनी कसम देकर बुलाने का आग्रह करती रही जिसे वो मना नही कर पायी।

लड़केवालों के घर पहुँचने से एक घंटा पहले वो पहुँच गयी थी। मानव को उसका आना अखर गया था उनके मन में शंका था कि अपने भाई अंकुर से रिश्ता जोड़ने के लिए वो कही कोई अड़चन न डाल दें। मानवी आकर उसके गले लिपट गयी थी जैसे दो बिछड़ी सहेलियाँ मिल रही हो। स्वरा को भी मानवी से बहुत स्नेह था जब वो दस साल की थी तभी से उसे अपनी छोटी बहनो की तरह ही पाला था।

  लड़की देखने के लिए लड़केवाले घरपर ही आ रहे थे अतः पूरी तैयारी पहले से हो चुकी थी। स्वरा मानव का सामना करने से भी कतराती रही और पूरे समय मानवी के ही साथ रही। जब लड़केवाले आये तो वो देखने में अच्छे भले और शालीन ही लग रहे थे। चाय-नाश्ता सबकुछ बहुत अच्छे से निपट गया था। लड़के की भाभी ने एक-दो प्रश्न मानवी से पूछे थे जैसे कि उसकी पढ़ाई कितनी हुई है? खाना बनाना आता है या नही वगैरह-वगैरह।

उसकी होने वाली सास ने बोला कि नवरात्रि चल रही है बेटी अगर गाना गा लेती हो तो कोई भजन गाकर सुना दो।

मानवी ने भजन गा कर सुना दिया, यहाँ तक सब बहुत अच्छा था।  

लड़का-लड़की भी एकांत में पाँच मिनट बात कर लिए किसी को कुछ भी एतराज करनेवाली बात नही नजर आयी। जब सबकुछ सही लग रहा था तभी लड़के की बड़ी बहन ने सबके सामने मानवी को नृत्य करके दिखाने को कहा। उसकी इस तरह की बेढंगी फरमाइश से मानवी स्वरा के तरफ देखने लगी उसकी आँखें छलक आयी। 

स्वरा उसके आँसू नही देख पायी और वही पर उसने लड़केवालों को खूब खरी खोटी सुना दी। हाँ-हाँ क्यों नही लोग एक घड़ा भी खरीदने बाजार जाते है तो कईबार ठोक बजाकर देखते है फिर ये तो लड़की है इससे गीत गवाकर, नृत्य कराकर, यहां तक की खाना बनवाकर भी देख सकते है आखिर आपलोग लड़के वाले है कुछ भी कर सकते है।

कभी आप पशु मेला देखने गए है दुधारू पशुओ का दांत गिनकर, घोड़े के पृष्ठ भाग को दबाकर कर, ऐसे कई तरीके अपनाए जाते है खरीदारी के वक्त। आप लोग भी ठोक बजा कर देख ले कही कोई कसर न रह जाये।

कभी न बोलने वाली स्वरा अपनी ननद के लिए आज दहाड़ पड़ी थी। मानवी से नृत्य की फरमाइश करना मानव को भी नही अच्छा लगा था परंतु स्वरा का विरोध करना और ऊँची आवाज में बोलना उससे कही ज्यादा बुरा लगा। जिसे सदैव उसने हेय दृष्टि से देखा था उसका विरोध का ऊँचा स्वर उसके गले की हड्डी बन गई थी।

लड़केवाले तो स्वरा के तीखे तेवर देखकर ही भाग लिए वो लोग खुद को

अपमानित समझ रहे थे। जाते-जाते कह गए कि घर बुलाकर बेइज्जत करके अच्छा नही किया।

स्वरा जानती थी जो कुछ भी हुआ अच्छा नही हुआ पर वो अपने रहते मानवी को दूसरी स्वरा बनते नही देख सकती थी इसलिये उसे मुखर होना पड़ा।

मानव उसके अंदर हुए आशातीत परिवर्तन से असमंजस में था इस सैलाब से उसे पहली बार डर लगा। उसने स्वरा को बोला तुमने जानबूझकर खलल डाला क्योंकि तुम मानवी की शादी किसी और से होता नही देख सकती। तुम अपने भाई के प्यार में इतनी अंधी हो गई हो कि तुम उसका रिश्ता कही और नही होने देना चाहती। वो मानवी को भड़काता रहा देख लिया न इसे सिर पर चढ़ाने का नतीजा ये तुम्हारी खुशियों से ईर्ष्या करती है। 

"जिसे जो बोलना है बोले अब मुझे कोई फर्क नही पड़ता।" इतना कहते हुए स्वरा ने अपना बैग उठाया और चलते बनी। जाते-जाते उसने देखा मानवी की आँखे कृतज्ञता प्रकट कर रही थी।

10

स्वरा डॉक्टर सुदीप की क्लीनिक में बैठी थी उसका मन मानवी के लिए बहुत उद्विग्न था। अपनी छोटी बहनों जितना ही तो उसकी देखभाल की थी आज उसकी कोई भी मदद नही कर पा रही थी। बार-बार उसे मानवी की बेचैन आँखे याद आ रही थी।

सुदीप ने उसकी व्यथा का कारण पूछा तो उसने सब कुछ बता दिया। उसने स्वरा को सबकुछ वक्त पर छोड़ने की सलाह दी। उसका मानना था इस दुनिया में जो भी होता है सब ईश्वर की मर्जी से होता है। बिना उसकी मर्जी के एक पत्ता भी इधर से उधर नही होता।

जो उसकी किस्मत में है वो होकर रहेगा। तुम व्यर्थ में उसकी चिंता करके अपना जी न जलाओ। आठ महीनों से ही वो सुदीप के साथ काम कर रही थी कितने अच्छे से वो उसे जानते थे, नेक सलाह दिया करते थे। कभी-कभी तो बिन कहे भी उसके हाव-भाव पहचान लेते थे। उनके साथ काम करके स्वरा को बड़ा सुकून मिलता था। वो कहते अपने काम में रम जाओ, जो भी करो मन से तल्लीन होकर करो, मुझे पूरा उम्मीद है तुम उसमें अपना सौ फीसदी दोगी। डॉ सुदीप अपना परिवार एक हादसे में खो चुके थे फिर दुबारा उन्होंने शादी नही की। उन्होंने एक बेटी को गोद लिया था वही उनके लिये सबकुछ थी। कब स्वरा को उसके बच्चों की जरूरत है, उसकी पसंद नापसंद उन्हें सभी चीजों का ख्याल रखा था। मानव के साथ शादी के ग्यारह साल में भी वो कभी इतना अपनत्व नही महसूस कर पायी। मानव ने तो बीते सालों में कभी भी उसके मन को पढ़ने या व्यथा जानने की कोई कोशिश नही की। उसने खाना खाया या नही, उसकी पसंद-नापसंद जानना तो दूर की बात थी। डॉक्टर कितने अच्छे थे मरीजो के लिए उनके दिल में तहेदिल से सेवा भाव था उन्होंने उसे पेशा नही बनाया था। कभी भी किसी मरीज को उन्होंने पैसे के आभाव में अपने पास से नही लौटाया। उनके मरीज उन्हें भगवान समझते थे, उनकी क्लीनिक के चौथे मंजिले पर ही उनका घर था जरूरत पड़ने पर देर-सबेर मरीज उनकी नींद में भी खलल डालते थे, बरसों से यही उनका दिनचर्या था। ऊपर के चार कमरे एक डॉक्टर का कमरा, एक उनकी लाड़ली बेटी का, एक छोटा सा कमरा घर के केयरटेकर का था, और एक गेस्ट रूम था। गेस्ट तो कोई आते नही थे वीकेंड में स्वरा के बच्चे आ जाते तो तीनों बच्चे साथ मे खूब खेलते। यही डॉक्टर की मिश्रित (ब्लेंडेड) फैमिली थी जिसमें खून के रिश्तों से ज्यादा घनिष्ठता, विश्वास और परिपक्वता थी। डॉक्टर की रसोई में वैसे तो सभी दिन रसोइया ही खाना बनाता था, पर रविवार की शाम को सिर्फ स्वरा ही सबके लिए खाना बनाती थी। कभी-कभी रविवार शाम को अंतरा भी खाने के लिये उपस्थिति हो जाती थी। डॉक्टर अंतरा से बोलते थे तुम्हारी दीदू के हाथ मे साक्षात अन्नपूर्णा है बड़ा बदनसीब है मानव जो इतनी अच्छी पत्नी की कद्र नही कर सका। अंतरा जब भी डॉक्टर से मिलती अपनी दीदू में हुए आशातीत परिवर्तन और नयी जिंदगी जीने की प्रेरणा देने के लिए कृतज्ञता जाहिर करती। इसबार जब अंतरा अपनी दीदू से मिली तो वो एक निष्कर्ष पर पहुँच गयी थी। वो मानव को तलाक देने को राजी हो गयी थी।

उसे मानव से कोई स्थायी निर्वाहिका और भरण-पोषण (अलिमोनी एंड परमानेंट मेंटेनेंस) नही चाहिये थी और न ही उसे अब जिंदगी से कोई शिकायत थी। बस वो अपने बच्चों की कस्टडी चाहती थी। उसकी जो भी आय थी उसमें वो अपने बच्चों का भरण-पोषण कर सकती थी। मानव जैसे लापरवाह और गैर जिम्मेदार इंसान के हाथों में वो अपने बच्चों की जिम्मेदारी का दायित्व नही सौंप सकती थी। पराई स्त्री के मोह में पड़ा व्यक्ति कभी भी बच्चों के साथ न्याय नही कर सकता। वो अपने जीते जी अपने बच्चों को इस हाल में मानव के पास नही छोड़ सकती थी।

मानव का अपने सहयोगी के साथ 'लिव इन उतार-चढ़ाव भरा रहा। चन्द ही दिनों में लिव इन का नशा उतरने लगा था। जिंदगी साथ में जितनी खूबसूरत लग रही थी कुछ दिन संग गुजारने पर उसकी बदसूरती नजर आने लगी। प्रत्येक स्त्री स्वरा जितनी सहनशील नही होती इस बात का एहसास उसे होने लगा था। जिस खोखली जिंदगी के लिए उसने अपनी इतनी सीधी और सरल पत्नी का बारंबार अपमान किया था वही उसकी लिव इन पार्टनर खून के आँसू रुला रही थी। कितने बार तो दिसंबर की सर्द रातों में उसने फ्लैट से बाहर निकाल दिया था, फिर या तो उसने अपने बैचलर दोस्तों के घर शरण लिया या सोसाइटी कैंपस में चक्कर लगाकर रात गुजारी। घरआने का साहस नही कर सका, आखिर किस मुँह से वापस जाता। घरवालों के प्रश्नों से कैसे खुद को बचाता? शेर की तरह जीने की आदत थी दबे पैर घर जाता तो उसके स्वाभिमान और अहंकार की धज्जियाँ उड़ जाती। वो किसी को भी समझाने की स्थिति में नही था कि कितना घाटे का सौदा इसबार उसने किया था। यहाँ पर उसकी प्रतिभा और प्रतिष्ठा दोनों ही दाँव पर लगी थी। जब उस दिन मानवी को लड़का देखने वाले आये थे कईबार उसका मन किया कि जाकर एकबार उससे माफी मांग ले, हो सकता है शायद माफ कर दे, पर कदम और जबान दोनो लड़खड़ाकर आगे न बढ़ सके। वही वो स्वरा के बदले तेवर और नपे-तुले कदमों से भी सहम गया था। उसे संशय था कि वो उसे माफ भी कर सकेगी? हर चमकने वाली चीज सोना नही होती अब वो ये जान चुका था पर बहुत बिलम्ब हो गया था। उसने घर पहुँचने के सारे रास्ते स्वयं ही बंद कर दिए थे। उसकी जिंदगी मदारी और बंदर वाली हो गयी थी।

    मानव ने जब देखा उसके ऑफिस के पते पर स्वरा ने तलाक का पेपर भेजा था तो वो हक्का-बक्का रह गया। वो किसी और के साथ रिलेशनशिप में था इसलिये तलाक न लेने से रोकने का अधिकार तो पहले ही खो चुका था। अब तो बच्चों की कस्टडी से भी हाथ धोने की नौबत आ गयी थी। उसे स्वरा से कभी प्यार नही था उसे बस उसे तंग करने की ही आदत थी उसे सदा ही उसने अपने से कम आँका। आदत अच्छी हो या बुरी इतने जल्दी जाती नही। अब जब वो खुद ही उसको छोड़ना चाहती थी तो भी मानव उसे आजादी नही करना चाह रहा था। उसे अपने पर पछतावा हो रहा था, बस मन मसोस कर रह गया, सोचता रहा काश! ऐसा कुछ न हुआ होता। वो किस मुँह से उसे अपने पास रोकता? 

कुछ लोगो और वस्तुओं की कीमत उनकी हमारी जिंदगियों से चले जाने के बाद होती है फिर सिर्फ पछतावा ही हाथ लगती है। वक्त रहते सजग न रहो तो पूरी जिंदगी सिर्फ पश्चाताप में कटती है। उसके गले मे जो हड्डी इसबार फँसी थी उससे न तो वो छुटकारा पा सकता था और न ही मुँह मोड़ सकता था। कोई उपाय शेष नही बचा था सिर्फ इसके कि उसकी सहयोगी ही उसे छोड़कर चली जाए।

     अंतरा आज मेडिकल कॉलेज से  होस्टल लौटी तो उसका मन बहुत खिन्न था। वो भी तो अनचाही बेटी थी पर किस्मत अच्छी थी उसका सोया नसीबा जाग गया था। कुछ महीनों में वो एक डॉक्टर बनने वाली थी परंतु सभी लड़कियों का भाग्य तो उनका साथ नही देता। उन्हें भिन्न त्रासदियों से गुजरना पड़ता है। संसार की सबसे सुंदर रचना को जाने कितने नरक से गुजरना पड़ता है? लाख चेष्टा करने पर भी रात आँखो में उसे नींद नही आयी।


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अंतरा को कैसुअल्टी में आयी उस लड़की की चीख और दर्द की कराह बार-बार कानों में सुनाई पड़ रही थी। कैसे आज कैफटेरिया और हर जगह टेलीविजन में उस लड़की का ही खबर छायी हुई थी, जिसे बाद में इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट किया गया था। वीडियो क्लिप जो बारंबार हर न्यूज चैनल पर दिखाया जा रहा था उसमें वो लड़की बोल रही थी कि "घरपरिवार के खिलाप जाकर उसने अपने प्रेमी संग भागकर शादी रचाई थी।" घरवालो ने उसका विवाह आता-साटा प्रथा के अन्तर्गत ही रिश्तेदारी में तय कर रखी थी। जब से दोनों ने भाग कर शादी की थी सारा समाज उनका दुश्मन हो गया था। गाँव के पंचों ने उस लड़की को अपनी शादी निरस्त कर रिश्तेदारी में शादी करने का दबाव बनाया पर वो ऐसा करने को राजी नही हुई तत्पश्चात उसके घरपरिवार का बिरादरी में हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। इसके बाद भी वो पंचो के निर्णय के आगे नही झुकी। उनदोनों को आसपास के किसी भी गाँव मे शरण नही मिली तो भागकर शहर में पहुँचे और पुलिस सुपरिटेंडेंट से सुरक्षा की गुहार लगाई। पुलिस ने भरसक मदद मुहैया कराने की कोशिश की पर दबंगों के मनसूबो और उनके साजिश के आगे असफल रही। दबंगों ने लड़की के पति की भरी दोपहरी में हत्या कर दी थी और वो भी गंभीर रूप से जख्मी थी। उसी के मेडिकल कॉलेज में उसका इलाज चल रहा था अतः पूरे देश के खबरों में वो लड़की और उसकी खबर सनसनी के रूप मे छायी हुई थी। अड़तालीस घंटे की अवधि पूरी करने के बाद भी वो खतरे से बाहर नही आयी थी। उसकी उम्र महज उन्नीस साल की थी घरवाले उसका ब्याह एक अधेड़ उम्र के इंसान के साथ पैसों की लालच में कर चुके थे। वो लड़की किसी भी हाल में अपने पिता के उम्र से कुछ साल बड़े आदमी से ब्याह नही रचाना चाहती थी। कौन सी लड़की भला बेमेल रिश्ता चाहेगी? घरपरिवार वालों ने उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त तक कह डाला था। वो समाज मे फैले इस तरह की कुरीतियों से अकेले कब तक सामना करती? लड़कियों और उनके घरवालों की परिस्थितियों की मजबूरी का फायदा उठाने वाले लोगों और बरसों से चली आ रही कुरीति का डटकर सामना करना किसी भी लड़की के लिये प्रशासन की मदद के बिना आसान नही है। पुलिस और प्रशासन की मदद भी इन बदनसीब लड़कियों की नियित नही बदल सकी। अक्सर लड़कियां समाज या ऐसी कुरीतियों के आगे दम तोड़ती नजर आती है। कुछ लड़कियां आत्महत्या तक कर लेती है और कुछ अपना नसीब समझ इसकी बलि चढ़ जाती है।

   जहाँ अस्पताल मे वो लड़की जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी घरवाले मना रहे थे कि वो मर ही जाती तो ज्यादा अच्छा था। विरादरी और देश दुनिया में उनकी नाक वैसे भी कट चुकी थी। सच बहुत कड़वा होता है, झूठी प्रतिष्ठा के लिए बेटी को अधेड़ आदमी से ब्याहना स्वीकार है परंतु उसके पसंद का हमउम्र रिश्ता आँखों मे किरकिरी की तरह चुभता है। ईश्वर ने घरवालों की सुनली और वो भी संसार छोड़ गयी।उसके मृत्यु पर कोई अफसोस नही हुआ, बेचारी जिंदगी और मौत दोनों ही लड़ाइयों में अपनों द्वारा परास्त हुई।  आज भी गरीब तबका और गाँव देहात में लड़कियों को बोझ ही समझा जाता है। घरपरिवार वाले विषम परिस्थितियों में भी लड़की को जल्द ब्याह करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते है। जबतक परिवार वाले लड़के और लड़कियों में भेदभाव करना बंद नही करेंगे और लड़कियों को बोझ न समझकर उनके दायित्व के प्रति सजग होंगे लड़कियां इसी तरह की कुरीतियों और लालची भेड़ियों के भेंट चढ़ती रहेंगी। 

हमारे देश में लिंग परीक्षण की मनाही है। लोगों को जैसे ही पता चलता था गर्भ में कन्या भ्रूण है उसकी हत्या कर दी जाती थी। देश के कुछ प्रदेशों में लड़कियों का लिगांनुपात कम होने के कारण दूसरे प्रदेशों से लाकर ब्याही जाती है ये लड़कियां। शहरों और बड़े कस्बों में लोग जागरूक है फिर भी हरसाल कुछ ऐसे केस सुनने को मिल ही जाया करता है जिसमें लावारिस बच्ची को किसी अस्पताल के पास, अनाथालय या किसी सुनसान इलाके मे छोड़कर लोग चले जाते है। इस साल तो संदूक में बंद करके गंगा (जल प्रवाहित) में प्रवाहित कर दिए जाने का भी खबर आया था। इसके बाद भी बच्ची बच गयी और मरी नही। देश को उस दिन का इंतजार है जब बेटियाँ बोझ नहीं हमारा अभिमान समझी जायेंगी। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा मिलाकर चल रही है फिर भी उस दिन की प्रतीक्षा रहेगी जब देश के प्रत्येक ग्रामीणांचल में भी कन्या के पैदा होने पर घरों में सोहर गवाये जाएंगे और थाली पीटकर उसी हर्षोल्लास से खुशियां मनायी जायेंगी जैसा की बेटा के जन्म पर होता आया है। आधी रात को भी बेटियाँ सुरक्षित अपने घर में पहुँच सकेंगीं और माँ बाप उनके प्रति भी निश्चिंत रह सकेंगे।

"घर को गुलजार करती है बेटियाँ

परियो सी आती जीवन को हर्षाती

मोहक अदाओं से मन को लुभाती

घर आँगन को सॅवारती, महकाती

त्याग और ममता की सूरत होती बेटी

पिता का अभिमान ईश्वर का वरदान

बोझ नही ये देना इनको असीम प्यार 

आह्वान किया है जागो देशवासियों

मत छीनो नन्हीं कलियों की ये मुस्कान

इनसे है रीत, जीवन मे बिखरी प्रीत

समाज मे बढ़ाती है मान देना सम्मान

शिक्षा और सुरक्षा पे हमें करना है ध्यान"

    अंतरा ने रात को अक्षरा को फोन करके कहा "दीदू तुम बैंगलोर में ही नमन जीजू के साथ रहना, यहाँ मत आना।" दीदू मुझे तुम्हारे लिए डर लगता है। डर लगता है कही तुम्हारे साथ कोई बुरा हादसा न हो जाये।

अक्षरा को समझ आ गया था कि तीन दिनों से इस घटना को लेकर परेशान है। उसने कहा "तुम डरो नही अंतरा अभिनव मुझे या तुम्हें कोई नुकसान नही पहुचायेगा।" वो बुरी संगत में जरूर है पर क्रिमिनल माइंडेड नही है। तुम आने-जाने में सावधानी बरतो। मैं तो उसकी पहुँच से बहुत दूर हूँ पर ईश्वर न करे उसे कोई फितूर सूझे। इसलिए मेरी बहन तुम अपना ख्याल रखो और अकेले मत आया जाया करो।


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अंतरा का इंटर्नशिप शुरू हो गया इससे उसकी जिंदगी और व्यस्त हो गई थी। अस्पताल मे उसकी ड्यूटी ज्यादातर रात में ही लग रही थी इसलिए तीन सप्ताह से घर भी नही जा सकी। बस ये सुकून था कि पचीस हजार की धनराशि स्टाइपेंड के रूप में मिलने लगी थी जिसके कारण उसकी परिवार पर निर्भरता खत्म हो गयी थी। मेडिकल के विद्यार्थी प्रायः अपने पार्टनर उसी क्षेत्र से चुनते है, उसने भी अपने लिए एक होनहार लड़का चुन रखा था। अंतरा को मेडिकल कॉउंसलिंग की शुरूआती दौर में ही पंकज अच्छा लगने लगा था। उनदोनों का पहली नजर वाला प्यार था। दोनों ने इतने सेमीनार और कॉन्फरेंस एक साथ अटेंड किये थे कि घनिष्टता बढ़ती ही चली गयी थी। वो लंबे डील-डौल का बहुत ही सुदर्शन व्यक्तित्व का युवक था। किसी को भी अपनी सूरत और शिष्टता से अपनी ओर आकर्षित कर सकता था। शक्ल देखकर कोई भी बता देता कि ये डॉक्टर ही होगा। उसकी और पंकज की इंटर्नशिप उसी मेडिकल कॉलेज में चल रही थी जिसकी पूरी अवधि एकसाल की थी जिसे कंपल्सरी रोताट्री रेसिडेंशियल इंटर्नशिप (CRRI) कहते है। कईबार हँसी-हँसी में वो उससे कहता ये मेडिकल कॉलेज ही तुम्हारी ससुराल है। पंकज एक प्रसिद्ध कार्डियोलोजिस्ट बनना चाहता था और वो बच्चों की डॉक्टर (चाइल्ड स्पेशलिस्ट) बनना चाहती थी। उसके अभिभावक उसी मेडिकल कॉलेज के रेडियोलोजी विभाग में रेडियोलोजिस्ट थे। उसने ही अंतरा को उसकी दीदू के लिए डॉ सुदीप को दिखाने की सलाह दी थी। सभी को अंतरा की पसंद पर गर्व था। जगजीवन पंकज से बेहतर रिश्ता उसके लिए नही ढूँढ सकते थे। वो आगे मास्टर्स की पढ़ाई विदेश जाकर करना चाहता था इसलिए इंटर्नशिप समाप्त होते ही दोनो परिणय सूत्र में बंधना चाहते थे। घरवाले भी उनके इस फैसले से सहमत थे बस इंटर्नशिप खत्म होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। 

    मेडिकल कॉलेज में अंतरा को पढ़ते देखकर अंकुर ने भी फार्मेसी का तीन साल का कोर्स करने की सोची। अंकुर काफी समय से एक बड़ा मेडिकल स्टोर खोलना चाहता था ताकि उस इलाके मे सारी दवाएं उपलब्ध हो सके। लोगों को सभी दवाएं उस छोटे से कस्बे में नही उपलब्ध हो पाती थी इसलिए उसने फार्मेसी का कोर्स करने को ठान लिया था। मानवी को भुला देने के उद्देश्य से भी उसने अपने को व्यस्त करना शुरू कर दिया था। उसने तीन साल का डी फार्मा का कोर्स पूरा किया और शीघ्र ही ड्रग लाइसेंस लेकर एक विशाल मेडिकल स्टोर खोल दिया। ये उस इलाके का पहला मेडिकल स्टोर था जो चौबीसों घंटे खुला रहता था और मरीजों को हर तरह की दवाएं उपलब्ध कराता था। स्वास्थ्य सम्बंधित दिक्कतें मनुष्य के जीवन में सबसे ज्यादा होती है किसी भी खर्चे में कटौती की जाती है पर स्वास्थ्य के साथ कोई खतरा मोल नही लेता अतः इस बिजनेस में कोई घाटा भी नही था। डॉक्टर जो भी दवाएं लिखते है उन्हें खरीदने के लिये मेडिकल स्टोर पर जाना अनिवार्य होता है। जरूरी था सभी दवाओं का उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिये अंकुर ने शहर के बड़े डीलर्स और दुकानों से ठीक तालमेल बना लिया था। पिता नौकर की मदद से एक प्रोविजनल स्टोर और आइसक्रीम पार्लर की देखरेख पहले से ही करते आये थे। ऊपरी मंजिले पर परिवार रहता था नीचे की छह दुकानों में तीन किराये पर उठा रखी थी। दो दुकानों को वो खुद ही देखते थे, एक में अंकुर के लिये मेडिकल स्टोर खुलवा दिया।

   अक्षरा और नमन भी शादी के पश्चात अपनी जिंदगी में बेहद खुश थे। शादी के एकसाल के भीतर ही उन्होंने अपना फ्लैट खरीद लिया था। बैंगलोर एक आई टी (IT) हब है, लोग वीकेंड या तो छुट्टी के मूड में होते है, अब यहाँ रिसोर्ट कल्चर बड़ी तेजी से पनप रहा है। किसी ट्रिप पर नही है तो रेस्टोरेंट में लंच और डिनर करते नजर आएंगे। उनदोनों का समय फिल्में देखकर कट जाता था। कभी कुछ काम नही होता तो नंदी हिल्स जाकर ही समय व्यतीत कर लिया करते थे। इधर क्लाइंट ने उन्हें अमेरिका बुलाया था दोनों का H-1B वीजा हो गया था जल्दी ही दोनों विदेश के लिए पहली उड़ान भरने वाले थे। उसकी जिंदगी से अभिनव नाम का कांटा कब का निकल चुका था। अभिनव को जब पहली दफा अक्षरा के कोर्ट मैरिज का पता चला था तो उसने कोई हंगामा नही किया था। हाँ दुख उसे बहुत हुआ था, जानता था कि वो उसे डिज़र्व नही करता। अभिनव ने उसे सर्फ एक ही मैसेज किया था जिसमें उसने लिखा था "मैं जानता हूँ कि मैं तुम्हें डिज़र्व नही करता, माना मैं सबकी नजरों में अच्छा इंसान नही हूँ फिर भी तुम मुझसे निश्चिंत रहो। बेशक तुम मुझे बहुत बुरा समझती रहो, मैने सिर्फ तुम्हें ही चाहा है वो भी पूरे दस सालों से तो भुलाने में थोड़ा वक्त तो लगेगा। तुम सब मेरे ओर से बेफिक्र रहो मैं कोई शोर-शराबा नही करूँगा। तुमसे सच्चा प्यार किया है, तुम नही तो कोई और भी नही अक्षरा। हाँ पर तुम्हारे बिना भी जी लूँगा, तुम्हे मुझसे डरकर जीने की जरूरत नही है।" 

अक्षरा ने वो मैसेज डिलीट कर दिया था। दुबारा कभी भी उसका कोई और मैसेज नही आया। कुछ दिनों में वो पल भी आ गया जब वो और नमन बरसों के लिए अमेरिका चले गए।

  अभिनव इधर ज्यादा गंभीर हो गया था, अपने बारे में वो पहले भी ज्यादा कुछ नही बताता था। अक्षरा के उसकी जिंदगी से चले जाने का दुख था या मानव का भाभी के प्रति बुरा रवैया, जो भी हो उसके अंदर अच्छे बदलाव हो रहे थे। भाभी का घर से चले जाना उसे भीतर ही भीतर खाये जा रहा था। उसने कभी नही सोचा था कि उसके बड़े भाई के कदम डगमगा जायेंगे, उसे उनका बर्ताव बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था। उसके हृदय में आशातीत परिवर्तन होने लगा था। अपनी बुरी संगत को छोड़कर वो जिम्मेदार बनने लगा और मन लगाकर काम करने लगा था। माँ और बहन के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह भी करने लगा था।

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स्वरा अपनी जिंदगी में बहुत आगे बढ़ गई थी। एक साल कैसे बीत गए पता ही नही चला! जब लोगों के दुख दर्द को सुनती और महसूस करती तो उसे अपनी तकलीफ बहुत कम लगती।

इधर उसकी कहानियां भी लोगो को बहुत पसंद आ रही थी। सोशल मीडिया में उसकी कहानियों की ही चर्चा थी। सचमुच किस्मत ने पलटी मारी थी, उसकी जिंदगी में सबकुछ बहुत अच्छा होने लगा था। बच्चे भी पढ़ाई में अच्छा कर रहे थे, वो अपने आज में बहुत खुश थी। उसने निर्णय लिया कि वो मानव के साथ फिर से गृहस्थ जीवन मे नही जाएगी, न ही भविष्य मे किसी से ब्याह का इरादा था। वो अपने दोनों बच्चों के साथ खुश थी। वैसे भी इस उम्र में उसे प्रेम से ज्यादा एक सहारे की जरूरत थी जो कामवासना को नही उसके मन को स्पर्श कर सके। उसे हर बात में डॉक्टर के सलाह की जरूरत थी, वो उसे समझते भी थे, हा व्यस्तता के कारण वक्त नही निकाल पाते थे। स्वरा ने भी अपने इर्दगिर्द पहरा रखा था। वो जानती थी उसका मन उस धीर व्यक्ति के लिए नियंत्रण खो रहा था, पर डॉक्टर उसके लिये परपुरुष ही थे और इस मर्यादित दीवार को वो अपने बच्चों की खातिर कभी नही लांघना चाहती थी। 

जब पति से कभी प्रेम न मिला हो तो जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व में ये सारी खूबी हो उसके प्रति झुकाव होना स्वाभाविक है। 


स्त्री को जहाँ प्रेम का आकर्षण होता है, वहां पुरुष को सिर्फ काम का आकर्षण होता है। पुरुष जब  किसी  स्त्री  को  प्रेम करता है, प्रेम बहुत जल्दी कामवासना की मांग शुरू कर देता है। स्त्री वर्षों प्रेम कर सकती है बिना कामवासना की मांग किए। उसके नाम पर अपना जीवन निर्वाह कर सकती है यदि परस्पर स्नेह हो तो।


डॉक्टर भी उसे पसंद करते थे पर कभी वो शब्द मुँहपर नही ला सके। वो जानते थे जिस तरह की स्त्री स्वरा थी उसके लिए उसका ममत्व ही सबकुछ था। वो उसके और बच्चों के बीच कोई दरार नही चाहते थे। मानव ने उसे तलाक नही दिया था। वो उन बच्चों का पिता था, भले लाख बुराई ही सही बच्चों के लिए भी नया रिश्ता जोड़ना आसान नही था। इसलिए सुदीप ने कभी भी अपनी भावनाओं को जाहिर नही होने दिया। जिसे जीवनदान दिया था उसके दुखों का कारण नही बन सकते थे।

उनके मन में स्वरा के लिए सच्ची भावनाएं थी, वो मन ही मन मानते थे उसके होने भर से वो खुद को अकेला नही समझते थे। किसी के लिये प्रेमभावना होना, एकदूसरे के लिए इज्ज्त होना यही बहुत था। इससे ज्यादा की हसरत भी वो नही रखना चाहते थे।


मानव पहले तो स्वरा को परेशान देखना चाहता था इसलिए तलाक नही देना चाहता था, बाद में पछतावे की अग्नि मे जलकर उसका रवैया नरम हो गया था। स्वरा उससे मुक्ति चाहती थी, उनके रिश्ते में कुछ भी नही बचा था जिसे टूटने से बचाया जा सके परंतु वो कही न कही एक धुँधली सी आस लगाए बैठा था।

वो अब उसे कोई अन्य मौका नही देना चाहती थी, न ही दूसरी शादी की फिराक मे थी। वो अपने को किसी भी बंधन में फिर से बाँधने को तैयार नही थी। जब रिश्तों को बैसाखी की जरूरत पड़े तो उनमें घुटन होने लगती है। उसमें फिर से कैद होने की चाह खत्म हो चुकी थी। उसे एक साथी की जरूरत थी जो उसके भावनाओं को समझ सके उसका हौसला अफजाई कर सके जो सच्चा पथप्रदर्शक हो वो डॉक्टर सुदीप थे। वो उनकी बहुत इज्ज्त करती थी। वो दिल से लोगो से जुड़ते थे, निःस्वार्थ बहुतेरे के मन को रोशन करते आये थे। उन्होंने अपने इर्दगिर्द ऐसे ही लोग इकट्ठा कर रखें थे जो तहेदिल से सेवाभाव रख सके। स्वरा बहुत ही सामान्य स्त्री थी, सादगी ही उसका गहना था। मानव कभी उसकी आन्तरिक सौंदर्यता देख ही नही पाया उसे बाहरी चमक दमक से सजी रंगीन दुनिया ही अच्छी लगी। जो सदैव उसके दोषों को ढ़ककर रखती थी वो शख्स ही उसे बोझ लगती थी। बिना मन के बोझ से भरा रिश्ता कब तक ढोया जा सकता था?


जब किसी से गहन प्रेम होता है तो अंतःकरण से होता है फिर लाख उपाय करो उसे मन से दूर करना सहज नही होता। सदैव प्यार सीरत और सादगी पर टिकती हैं सूरत देखकर प्यार की उम्र नही तय की जाती। ऐसे में एक का ही वर्चस्व रह जाता है। कामातुर पुरूष नारी की सुंदरता के मोह में पड़कर हमेशा गर्त में ही जाता हैं।


  मानव और उसकी पार्टनर के समीकरण दिनोदिन बिगड़ने लगे थे। जहाँ घर मे उसका सिक्का चलता आया था पार्टनर के साथ उसकी एक नही चलती थी। वो अपनी असहजता जब भी प्रकट करता तो हंगामा खड़ा हो जाता। उसका वर्चस्व इतना ज्यादा था कि वहाँ उसे घुटन होने लगी। रात को ढाई बजे भी वो किचन संभाल रहा होता, उसे भावुकता में लिए अपने गलत फैसले पर बहुत गुस्सा आता था। उसे स्वरा पर हुए अन्याय का एहसास तब हुआ जब किसी और के बर्ताव का दुष्परिणाम वो खुद भुगत रहा था। उसकी पार्टनर हिंसात्मक हो जाती थी कही किसी से शिकायत भी नही कर सकता था। हद उसदिन पार हो गई जब ठंड और बारिश में सारी रात उसने गुस्से में बाहर खड़ा रखा। सीढ़ियों पर बैठे-बैठे उसको सर्दी लग गई और निमोनिया पकड़ लिया, दरबान ने उसे कपकपाते हालात मे अस्पताल पहुँचाया था। ठीक होने पर इतनी तो अक्ल आ गयी थी कि वो अपने घर वापस आ गया था। घर वही था पर सबकुछ बदल गया था, अब वहाँ कोई ध्यान रखने वाला नही था, बच्चों के शोरगुल से कभी महकता घर आँगन आज साय साय कर रहा था। कहते है सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नही कहते। जो सबकुछ गवा कर आया हो उसे क्या कहते है?

एक अच्छी पत्नी की उपेक्षा करके किस तरह से अपनी पसंद की स्त्री के साथ रहने के लिए उसके हिंसात्मक रवैये का शिकार होता रहा पर मुँह से एक शब्द भी नहीं निकाल सका। कामातुर पुरूष स्त्री की मोह में अक्सर घरेलू हिंसा का भी शिकार होता है।


मानव जब अपनी सहयोगी लड़की से मिला तो वह उसे बहुत पसंद आई। लड़की ने उसे बताया कि वह पहले किसी और के साथ संबंध में थी लेकिन उस लड़के के हाथों उसे हिंसा झेलनी पड़ी थी। मानव के मन में आया कि वह अपनी सहयोगी की रक्षा करेगा। वह तब यह सोच भी नहीं सकता था कि एक दिन वह खुद उसी लड़की के हाथों घरेलू हिंसा का शिकार बन सकता है।

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घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष समाज में फैली लैंगिक धारणाओं के कारण इसकी शिकायत करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। इसलिए मानव मन मसोस कर रह गया और कही भी अपनी आवाज उठाने की हिम्मत नही कर सका। ऐसे में तमाम पुरुषों के लिए मदद मांगना कहीं ज्यादा मुश्किल हो जाता है। वो भी तो स्वरा को परेशान करता आया था। स्वरा रिश्तों को और गृहस्थी को बचाने के खातिर चुपचाप सब सहन करती थी। जब तक अपने पाँव में बेवाई नही फटती दूसरो का दर्द नही समझ मे आता। घरेलू हिंसा का एक पक्ष यह भी है कि पीड़ित महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी हैं लेकिन उनकी आवाज इतनी धीमी है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को सुनाई पड़ती है। 

पराई स्त्री के प्रेम में कामातुर पुरुष उसकी दासता सहज स्वीकार कर लेता है और अपनी स्त्री का तिरस्कार करने से भी बाज नही आता। स्त्री परपुरुष प्रेम में चारित्रिक हनन स्वीकार कर लेती है। हालांकि चरित्र हनन दोनों का ही होता है।


  समय पंख लगाकर उड़ रहा था मानवी का स्नातक तृतीय वर्ष की परीक्षा शुरू होने वाली थी। स्वरा के घर से चले जाने पर मानवी के कंधों पर घर की काफी जिम्मेवारी आ गयी थी।


मानव बड़ा भाई था पर अपने ही घर में वो पहले जैसे सम्मान का अधिकार खो चुका था। जो स्नेह और आत्मीयता पहले घरवालों की नजरों में हुआ करती थी वहाँ अब उलाहनों और अपेक्षा ने घर कर लिया था। वो स्वयं भी अपने को हेय दृष्टि से देखने लगा था। उसे घरवालो की नजरों में पुनः वही सम्मान पाने की संभावना लगभग खत्म होती दिख रही थी।


   मानवी के लिए कई रिश्ते देखे जा चुके थे किसी न किसी अड़चन की वजह से रिश्ता नही हो पाता था। मानव जोर जबरदस्ती से ब्याह करने का हक खो चुका था। अभिनव भी मानवी के समर्थन में खड़ा दिख रहा था। उसने भाई को बात-बात में स्पष्ट कर दिया था कि मानवी के मर्जी के खिलाफ कही भी उसका रिश्ता तय नही करे। वो मानवी को खुश देखना चाहता था अतः उसने भाई से बोला "आप उसे अपनी जिद्द की भेंट मत चढ़ने दे।" मैं अक्षरा के काबिल नही था इसलिए उसने मुझसे शादी नही की। इसे अपने मान-सम्मान से जोड़कर मत देखे। अक्षरा से मैने सच्चे मन से प्यार किया था। वो मेरी जिद में शामिल नही थी। उसे जबर्दस्ती हासिल करके मैं सिवाय नफरत के कुछ और नही पा सकता था। उसने जिससे शादी की है उसके साथ खुश रहे और मुझे कुछ नही चाहिये। आप भी भाभी को ब्याह कर इस घर में लाये थे परन्तु उनके मान-सम्मान और हितों की रक्षा नही कर सके। जबरन थोपे रिश्ते से कभी किसी का भला नही हो सकता। जिन रिश्तों में प्यार न हो उन्हें जबरन ढोने का कोई फायदा नही होता। अभिनव के मन पर बहुत बड़ा बोझ था उसे स्वयं पर आत्मग्लानि होने लगी थी। उसे बहुत दुख था कि जरूरत के वक्त वो अपने स्वार्थवश भाभी के हितो की रक्षा नही कर सका परंतु मानवी तो उसकी अपनी सगी बहन थी जिससे उसे बहुत स्नेह था वो उसके साथ कुछ भी बुरा नही होने देना चाहता था। आजतक अपनी बहन को दोनों भाइयों ने कभी बोझ नही समझा था पर प्रतिशोध की आग में मानव बहन की खुशियां दाँव पर लगा रहा था। उसे कॉलेज से आने में जरा सा बिलम्ब होता तो अभिनव खुद कॉलेज लेने पहुँच जाता था। अपनी बहन पर उसका एकाधिकार था। उसे मानवी की बेहद चिंता रहती थी। बस चाहता था अच्छे से उसकी शादी हो जाये और वो अपने घरपरिवार में खुश रहे। पिता के दुनिया से चले जाने के पश्चात वो दोनों ही भाई और पिता के कर्तव्य का निर्वाह कर रहे थे। उसके शरीर पर एक हल्की सी खरोंच भी बर्दाश्त नही कर पाते थे।


   मानवी एक दिन कॉलेज से ऑटोरिक्शा में अपनी सहेली के साथ वापस लौट रही थी कि रास्ते मे दो बाइक सवार युवकों ने उनके ऊपर तेजाब फेंक दिया। निशाना उसकी सहेली पर साधा गया था पर मानवी के एक बाह और गले पर भी एसिड जा गिरा था। दोनों लड़कियां भरी दोपहरी कराहती रही पर कोई भी उनकी मदद को आगे नही आया। कोई भी व्यक्ति उन बाइक सवारों को धर दबोचने में सफल नही हो सका। आंधी की तरह आये और लड़कियों पर कहर ढाकर चले गए।


ऑटोरिक्शा ड्राइवर ने देर न करते हुए दोनो को अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर तक पहुँचाकर उनके परिजनों को सूचित कर दिया था। 


आभिनव को जब पता चला कि उसकी बहन के साथ ऐसा हादसा हो गया तो वो अपने को कोस रहा था कि उसका ध्यान नही रख सका। ट्रॉमा सेंटर के बाहर वो अंतरा को फोन पर रोते हुए सब दुखड़ा बता रहा था। अंतरा का दिन में ड्यूटी नही था। पता चलते ही वो होस्टल से ट्रॉमा सेंटर की तरफ दौड़ी, अभिनव को इस तरह बिलखते और परेशान देखकर उसके पास बैठकर उसका ढ़ाढस बढ़ाने लगी। तबतक सभी फॉर्मेलिटी पूरी हो चुकी थी और उन्हें ट्रामा सेंटर में भर्ती कर दिया गया था।

अभिनव उससे कह रहा था "अंतरा मानवी ने किसी का क्या बिगाड़ा था?" वो तो बहुत ही सीधी-सादी लड़की हैं। उसका तो प्यार-व्यार का भी किसी से कोई चक्कर नही था। अंकुर के सिवाय कभी कोई लड़का उसकी पसंद नही रहा फिर क्यों उसके साथ इतना बुरा हुआ? ठीक ऐसे ही जाने कितने प्रश्न एसिड अटैक से गुजरी लड़कियों के परिजनों की होती है जिसका जवाब वो चाहते है परंतु सांत्वना देने के सिवाय कोई जवाब नही होता।

वो गिड़गिड़ाते हुए अंतरा का पैर पकड़ लिया "तुम तो यहाँ डॉक्टर हो मेरी बहन के लिये कुछ तो करो। उसे बचा लो मैं जीवन भर तुम्हारा कर्जदार रहूँगा।"

अंतरा भीगी पलको से उसे उठाते हुए बोली "ये धैर्य रखने का वक्त है, थोड़ा हिम्मत से काम ले, अभी हमे मानवी को भी संभालना होगा।" हम सबको तो ये भी पता नहीं कि किसने और क्यों इस तरह का काम किया? आखिर ऐसा करने के पीछे मकसद क्या था?


मानवी की स्थिति स्थिर थी परंतु उसकी सहेली बुरी तरह जख्मी थी। मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में जिंदगी और मौत की लड़ाई के बीच जूझ रही थी। 

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उनदोनों को उपचार हेतु मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया। इसबात का पता चलते ही दोनो के  परिजन भी वहाँ कुछ देर में उपस्थिति हो गए। वहाँ एकत्रित लोगों मे अंकुर भी था जो मानवी के लिए व्यथित दिख रहा था पर अपने मन की व्यथा किसी के भी सामने नही प्रकट कर पा रहा था। उसने तो कभी ख्वाब में भी नही सोचा था कि उसके साथ इतनी बड़ी त्रासदी हो जाएगी। वो तो कभी किसी का अहित नही सोचती थी फिर भला क्यों कोई उसके साथ इस तरह से पेश आया। वो मानव और अभिनव की ढाढ़स बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा था पर विचारों के उथल पुथल से स्वयं को नही रोक पा रहा था।

मानव सारा दोष खुदपर मढ़ रहा था। वो बड़बड़ा रहा था "ये मेरे ही बुरे कर्मों का नतीजा है जो आज मेरी बहन को चुकाना पड़ रहा है।"

एकबार फिर छोटे से कस्बे मे लड़कियों पर एसिड अटैक टेलीविजन पर चर्चा का विषय बन गया था। भरी दोपहरी में  एसिड अटैक की वजह से पूरे इलाके में अफरा-तफरी का माहौल हो गया था।  उस झुलसी हुई लड़की के परिवार के सदस्य भी मेडिकल कॉलेज में उपस्थित हो चुके थे। नर्स और वार्डन लड़की की स्थिति से परिजनों को अवगत कराने की कोशिश करते दिखे। लडकी की माँ की चीख सभी जगह सुनाई पड़ रही थी।


मौके पर पहुंची पुलिस ने भी मानवी का बयान ले लिया, दूसरी लड़की की स्थिति अब भी नाजुक बनी हुई थी। वारदात की घटना स्थल के इर्दगिर्द की सीसीटीवी कैमरा को खंगाला गया। ऑटोरिक्शा ड्राइवर और चश्मदीदो की मदद से पुलिस दोनों बाइक सवारों की शिनाख्त करने में सफल हो गयी।


मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने बताया कि घटना को लेकर दो लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है जिसके कहने पर एसिड फेंका गया है  उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया है।  मामले की जांच करने पर पता चला मानवी के सहेली के सौतेले बड़े भाई ने ही इस साजिश को अंजाम दिया था। उसके खिलाफ आगे की कार्रवाई की जा रही थी। पुलिस अधीक्षक से ही पता चला जाँच में दोषी साबित होनेपर उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने और सजा दिए जाने की संभावना है। सारा मामला घरेलू कलह का था। पिता ने मरने से पहले अपनी जमीन जायदाद का मालिकाना हक अपनी दूसरी पत्नी के बेटी को दे रखा था। सौतेले भाई को शराब और जूए की लत थी इसलिये पिता ने सारे मालिकाना हक बेटी को शौप दिए थे। उस बात की खींझ मिटाने के लिये उसने ऐसी साजिश रची थी। इसबार एसिड अटैक प्रेमप्रसंग के चलते नही अपितु पैतृक संपत्ति पर उठे विवाद के कारण हुआ था। उस लड़की का नब्बे प्रतिशत शरीर झुलस गया था। उसके बचने की उम्मीद भी छत्तीस घंटे के भीतर खत्म हो गयी। माँ वही चीखती-कराहती रही और लड़की संसार से विदा हो गयी।

मानवी की हालत में सुधार था। उसका एक हाथ,गला और गर्दन सबसे ज्यादा प्रभावित थे। वो अपने जीवित होने की विवशता पर कोस रही थी। इस समय उसकी जो मानसिक अवस्था थी उसपर निजात पाना बहुत मुश्किल था। जो भी उससे मिलने जाता देखकर रो पड़ता था।


  स्वरा जब उससे मिलने गयी तो वो बिखर गयी। "भाभी मैं जिंदा क्यों हूँ?" ऐसा कहकर उससे लिपट गयी थी।

स्वरा ही तो उसे भली भांति समझती आयी थी। ऐसी स्थिति में एक लड़की की मनोदशा को समझना आसान नही था।

मानव जब भीतर बहन से ऐसी हालात मे मिला तो सिर्फ खुद को कोस रहा था और बार-बार अपने को दोषी मान रहा था। बारंबार उसके मुँह से निकलता "मेरे बुरे कर्मों का फल मेरी बहन भुगत रही है।" 


माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा " ऐसा मत सोचो बेटा इस बात पर तुम अपना मन मलिन मत करो।" जो उसके नसीब में लिखा था उसे कोई नही बदल सकता। माँ का कलेजा फटा जा रहा था परंतु विपरीत परिस्थितियों में उन्होनें बड़ी हिम्मत दिखाई। 


अभिनव पहले ही बाहर इतना रो लिया था कि भीतर एक भी आँसू नही निकले। वो बहन के समक्ष रोकर अपने को कमजोर नही साबित करना चाहता था। अपनी लाड़ली बहन की ये हालत देखकर उसका मन विह्वल हो उठा। वो अंदर आने से पहले ही हौसला जुटा चुका था। बस उसके समक्ष मजबूत बने रहने का दिखावा कर रहा था जिसमें काफी हद तक सफल भी था । 


अंतरा बेशक डॉक्टर थी पर देखकर उसका मन भी विचलित हो गया था।


  आज ही तो मानवी को वार्ड में शिफ्ट किया गया था। अंकुर वही बाहर दरवाजे के पास से खड़ा उसे देखता रहा अंदर जाने की हिम्मत नही हो पायी थी। वो कहता भी तो क्या कहता? वो किसी भी तरह की सांत्वना देने की स्थित में नही था। एकबार सामने जाता तो मन विह्वल हो जाता। उसकी मानवी पर दुखो का पहाड़ आन पड़ा था और वो सिर्फ दूर से कातर नेत्रों से देखता रहा। वो उसके समक्ष जाने को तैयार नही था। अभिनव ही उसका हाथ पकड़ अंदर ले गया था। 


अभिनव ने मानवी से कहा "देखो ये पूरे तीन दिनों से बाहर खड़ा रहा है पर अब अंदर नही आ रहा है।" तुम दोनों थोड़ी देर बात करो मैं जरा डॉक्टर से मिलकर आता हूँ। अभिनव जानबूझकर दोनों के बीच से हट गया। वो चाहता था कुछ पल दोनों एकांत में व्यतीत करें। कुछ देर तक कमरे मे खामोशी छायी रही।

पहले कौन मौन तोड़ेगा, यही नही समझ आ रहा था। बीते साल में इतना कुछ घटित हो गया था अंकुर को समझ में नही आ रहा था कि शुरुआत कैसे करें। मानवी भी उसको पढ़ने की कोशिश कर रही थी। क्या वो इस सूरत में उसके साथ पहले जैसा ही वर्ताव कर सकेगा? उसे उसकी सहानुभूति नही चाहिए थी बस इसी दुविधा में कुछ भी बोल नही सकी। 


16

अंकुर ने बोला "तुम जल्दी ठीक हो जाओगी।" बस कुछ और दिनों की बात है।


मानवी बोली " ये घाव तो बरसों में भी नही भरेगा।" क्या ठीक हो जायेगा?


मुझे तो आइने में भी अपनी सूरत देखने का मन नही करेगा। बड़े और बच्चों को दिन में भी मुझसे डर लगेगा। अब कुछ नही ठीक होगा। हर कोई मुझपर तरस खायेगा।


कोई तुमपर तरस नही खायेगा मानवी। सब तुमसे बहुत प्यार करते है।


मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? मैने तो आजतक कभी किसी का बुरा नही सोचा। अब तो तुम भी मुझसे प्यार नही कर सकोगे?


मैं तुम्हें अब पहले से ज्यादा प्यार करता हूँ। मुझे लगता है एकदूसरे से दूर जाने का हमने गलत फैसला किया था। अब तो मुझे पूरा यकीन हो गया है कि हम एकदूसरे के लिए ही बने है।


"मुझपर तरस खाते हुए अब तुम बातें बनाना भी सीख गए हो।" ये कहते हुए मानवी ने दूसरी तरफ मुँह फेर लिया।


नही मानवी, मैं तुमपर तरस नही खा रहा। तुमसे दूर जाने का एहसास भी मेरी जान ले लेगा। हमने दूर जाने का फैसला अपनी बहनों की खुशी के खातिर लिया था। मेरी खुशी तो हमेशा से तुमसे ही थी। तीन बहनों का भाई हूँ इसलिए उनका अहित नही कर सकता था। तुम्हारे समक्ष जो यहाँ खड़ा है वो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अंकुर है। जिसने तुमसे तहेदिल से प्यार किया है।


अब मैं उसके काबिल नही अंकुर। मुझे खुद से ही नफरत होने लगी है। जब मुझे खुद की शक्ल देखने का साहस नही तो तुम रोज कैसे देख सकोगें?


मानवी मुझे तुम्हारी सूरत से नही सदा सीरत से प्यार रहा है। कल मेरे साथ कोई हादसा हो जाता तो क्या तुम मुझे छोड़ देती?


मुझसे दूर चले जाओ वरना तुम्हारी जिंदगी में जहर घुल जायेगा।


मेरी आँखों में देखो मानवी, इनमें तुम्हे प्यार नजर आता है या तरस? वो उसे झकझोर रहा था बारंबार पूछ रहा था बोलो मानवी तुम्हे क्या दिख रहा है?


मुझे बहुत दर्द हो रहा है अंकुर। उसके गालों से आँसू लुढ़क गए और वो कराह उठी।


अंकुर को पछतावा हुआ "आई एम सॉरी! आवेश में आकर मैने ध्यान ही नही दिया।" अगर तुम साथ हो तो मैं  सब ठीक कर दूँगा। वादा करो तुम भी मेरा साथ दोगी और मुझे अकेला नही छोड़ोगी।


मानवी ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया। दोनों की निष्कपट आँखे टकरायी जिनमे सिर्फ प्यार, सहानुभूति और वेदना का सम्मिश्रण था। वो काफी देर तक उसके पास बैठा रहा। सारी शिकायतें दूर हो गई थी बाकी जो बचे रहे आँसुओ में धुल चुके थे। दो बिछड़े प्रेमी इस दुखद घड़ी में भी सुख की अनुभूति कर रहे थे।

अंकुर को लग रहा था उन्हें फिर से एकजुट करने के लिए ये ईश्वर की ही कोई लीला थी। उनके प्यार का सबसे बड़ा इम्तिहान जिसमें वो दोनों अव्वल अंको से पास हुए थे।


मानवी का भी अंतःकरण खिल उठा, अभी भी उनके बीच परस्पर प्रेम था। एसिड अटैक की वजह से अंकुर की भावनाएं परिवर्तित नही हुई थी। उसे अपना बनाने का वो दृढ़ संकल्प कर चुका था।


मेडिकल कॉलेज में कईबार स्वरा और मानव का आमना-सामना हुआ और वो एकदूसरे से कतराते नजर आये। पहले दिन तो मानवी की चिंता में किसी को सुध ही नहीं थी। अगले दिन से स्थित में सुधार होते देख सभी गिलह-शिकवे दूर करते नजर आये।

मानव ने अपनी गलतियों के लिए पहली बार स्वरा से सच्चे मन से माफी माँगी थी।

स्वरा को भी उसे माफकर आगे बढ़ने में हिचकिचाहट नही हुई। वो जानती थी आगे बढ़ने के लिये और मन की शांति के लिये माफ कर देना बहुत जरूरी है।

उसके लिए माफ कर देने का ये मतलब नही था कि वो दोनों फिर से पति-पत्नी जैसा व्यवहार करने लगेंगे।


मानव ने उससे पूछा था कि तुम मुझसे तलाक क्यों चाहती हो?


स्वरा ने सीधा और सपाट सा उत्तर दिया था "क्योंकि मैं अब इस रिश्ते में नही रहना चाहती।" 


इस रिश्ते में न रहने की कोई तो वजह होगी? हमारे दो बच्चे है उन्हें हमारी जरूरत होगी जरा उनके बारे मे भी सोचो। हमारे अलग होने से उनपर भी इन सब चीजों का असर होगा।


इस रिश्ते में न रहने की वजह आप जानते है। हमारे बीच प्यार तो कभी था ही नही। रिश्ता निभाने का दारोमदार मेरे ही ऊपर था। आपने कभी रिश्ता निभाने का सार्थक प्रयास नही किया नही तो ये हस्र न होता।


मानव ने प्रतिवाद किया "ये तुम नही तुम्हारे अंदर की लेखिका और उसकी प्रसिद्धि बोल रही है।"


स्वरा ने प्रतियुत्तर किया "ये मेरे अंदर की स्त्री और उसकी गरिमा बोल रही है। आप पत्नी और बच्चों की अपेक्षा कर लिव इन मे चले गए जब वहाँ आप सामंजस्य नही स्थापित कर पाये तब वापस आये। आपके सहयोगी के साथ आपका रिश्ता ठीक चला होता तो आप कभी वापस नहीं आते। अपने मेरे स्त्रीत्व का भी तिरस्कार किया।

पहले हमारे बीच प्रेम और आपसी सामंजस्य की कमी थी अब तो मैं आपकी इज्ज्त भी नही करती। बिना प्यार के भी रिश्ता निभ जाता है परन्तु रिश्ते में एकदूसरे के लिए आदरभाव न हो तो नही टिकता। आप मेरी नजरो में वो हक खो चुके है। बच्चे सदा आपके है और रहेंगे। मैं अब कभी आपकी जिंदगी में वापस नही आ पाऊँगी।


प्यार एक खूबसूरत एहसास है, जो हर इंसान के दिल के किसी न किसी कोने में बसा होता है। मेरे जीवन में प्यार बहुत मायने रखता है। प्यार सासों में फूलों की खुशबू की तरह रचा-बसा होता है, जिसे आप महसूस कर सके, एक अहसास भी ताउम्र नही भूला जा सकता ठीक अपने मानवी और अंकुर की तरह। इन दोनों बच्चों ने अपने बड़ो की खातिर अपना प्यार त्याग दिया था।

जब उस प्यार की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी तो एकदूसरे के साथ खड़े है। स्वार्थभावना से प्यार कभी नही टिकता। ये दोनों बच्चे हमसे बहुत छोटे है पर प्यार का सही मायने समझा रहे है।


मानव ने कहा "परन्तु तुमने मुझे माफ कर दिया है।"


स्वरा बोली "माफ करने का मतलब फिर से जिंदगी में नही शामिल कर लिया है।" मैं आपको माफकर अपने जिंदगी में सुख शांति की ओर अग्रसर हो गयी हूँ। 


मानव की आवाज में गंभीरता और पछतावा था तो मैं ये समझूँ कि अब हमारे बीच कुछ नही बचा। 


वो बोली "मैं अब किसी के साथ शादी के रिश्ते में नही बंधना चाहती।" मुझे इस बंधन से डर लगता है। आप मुझे आजाद कर दे।

17

दोनों परिवारो ने मानवी के जीवन मे नई ऊर्जा भरने की पूरी कोशिश की। उसकी शादी अंकुर के संग तय कर दी गयी। एक साल बाद अंतरा और पंकज के साथ ही उसी लग्नमंडप में उनकी भी शादी करवाने का निश्चय किया गया। पंकज के अभिभावकों को भी एकसाथ शादी कराने में कोई एतराज नही था। उन्हें भी मानवी के साथ हुए हादसे से पूर्ण सहानुभूति थी।


अक्षरा को भी नमन के साथ आने को और पहले से ही टिकट कराने को कह दिया गया। अक्षरा को जब दोनों शादी तय होने की खबर मिली तो वह बहुत खुश थी। उसे भी शादी मे आने की बड़ी उत्सुकता थी।


मानवी भी शादी तय होने से खुश थी पर मन से एसिड अटैक की दहशत नही निकल रही थी। उसकी मनोस्थिति नई परिस्थितियों में स्वयं से समझौता करने को तैयार नही थी। 


   अंतरा भी बहुत खुश थी उसे पंकज जैसा होनहार लड़का जीवनसाथी के रूप में मिल रहा था। पंकज के अभिभावको को उसकी पसंद पर बहुत गर्व था। अंतरा सर्वगुण सम्पन्न लड़की थी। उसे लोगों को बड़ी सरलता से अपना बनाना आता था। वो बहुत आसानी से लोगों से घुलिमिल जाया करती थी। मानवी के इलाज में उसने अपनी तरफ से भरसक पूर्ण कोशिश की और बड़े-बड़े विशेषज्ञों से परामर्श लिया ताकि इलाज अच्छे से हो सके।

डॉक्टर सुदीप ने ही मानवी की मनोदशा की काउंसलिंग करी थी, अंकुर की मदद से उसकी मनोस्थिति को सुधारने में उन्होंने पूर्ण सहयोग दिया। एकबार तो लगा कि वो अब कभी भी साधारण जिंदगी नही जी पायेगी।


किसी की हत्या कर देने से उसकी  जिंदगी खत्म हो जाती है, हाथ पांव काटने से अपंग किया जा सकता है लेकिन तेजाब डाल दिया जाए तो वह इंसान ना मर पाता है ना जी पाता है। तेजाब से  सिर्फ जिंदगी ही बदसूरत नही होती समाज भी उस चेहरे को स्वीकार करने से झिझकता है। तेजाब से सिर्फ चेहरा नहीं इंसान की आत्मा भी जल जाती है। 


एसिड अटैक के सालभर बाद तक भी मानवी शीशा नहीं देख सकी। बच्चे उससे डरते थे यहाँ तक कि उसके अपने भतीजे उसके पास आने से कतराते थे। वो खुद अपने आप को शीशा में देखकर डर जाती थी।

मानवी सबको आपबीती सुनाती "पहले तो ऐसा लगा कि उसके ऊपर पानी पड़ गया है परंतु कुछ ही पलो में वो भयंकर असहनीय दर्द से पीड़ित थी।" बात करते-करते वो मायूस हो गयी अब इसी दर्द और शरीर के साथ जिंदगी काटनी है। अक्सर आँखों के कोर से आँसू बह जाते। जिस दिन ये हादसा हुआ था उस दिन उसने नारंगी रंग के कपड़े पहने थे। उस घटना के बाद उसने नारंगी रंग के कपड़े पहनना ही छोड़ दिया। उसके दोस्तों ने भी उसका साथ नही दिया। घरवालों के पूरे सहयोग के कारण ही वो नॉर्मल जिंदगी जीने में काफी हद तक सफल हो पायी।


साल बीतते वक्त नही लगा, जिंदगी फिर से पटरी पर आ गई। नमन ऑफिस के काम मे व्यस्तता के कारण शादी में नही आ सका। अक्षरा बस दस दिनों के लिये आयी। वो भी ज्यादा दिनों की छुट्टियां नही ले सकी। उसके छोटे भाई-बहन की शादी थी अतः ये मौका हाथ से नही गवाना चाहती थी। एकबार फिर से घर में रौनक छा गयी।


शादी के ही फंक्शन में अभिनव की नजर अक्षरा पर पड़ी। बहुत समय बाद दोनों का आमना-सामना हुआ था। वो भी उसके अंदर हुए परिवर्तन से हैरान थी। वो पास आकर धीरे से बोला था "अच्छी लग रही हो।"

अक्षरा ने कोई जवाब नही दिया था। मेहँदी, संगीत और हल्दी सभी रस्मो में सामना होता रहा। आखिर कब तक नजरअंदाज करती?

एकदिन अक्षरा ने पूछ ही लिया "शादी क्यो नही कर लेते?"

अभिनव ने कहा "तुम्हें तो पता है तुम्हारे सिवाय शायद ही कोई और लड़की कभी मुझे पसंद आये।"

अक्षरा ने जवाब दिया "मेरी तो शादी हो चुकी है।" तुम भी अपने जीवन मे आगे बढ़ो।

अभिनव ने प्रतियुत्तर दिया "मुझे तुम्हारे जैसी नकचढ़ी लड़कियां ही पसंद आती है।" दूसरी नकचढ़ी ढूँढने में थोड़ा तो वक्त लगेगा। जबतक कोई अन्य नही मिल जाती इंतजार जारी रहेगा। तुम चिंता मत करो अब तुम मेरी लिस्ट में शामिल नही हो। तुम्हे बहुत परेशान करता आया हूँ पर क्या करूँ? मैं ऐसा ही हूँ। अगर मैं तुम्हारे जितना काबिल होता तो तुम जरूर मेरी जिंदगी में शामिल होती। अब सिर्फ अपने से शिकायत है कि मैं तुम्हारे लायक नही बन सका। अंतरा को तो मै अपनी बहन मानता आया हूँ। मानवी के इलाज में उसने और पंकज ने हमारी बहुत मदद की है। मैने उसमें और मानवी में कभी फर्क नही महसूस किया।


अब किसी के दिल मे कोई शिकायत नही थी। मानव और अभिनव आपनी बहन की शादी से बेहद खुश थे वो जान चुके थे उसकी खुशी अंकुर के साथ ही है। हाँ, मानव के मन में पछतावा जरूर था। वो स्वरा को हमेशा के लिए खो चुका था। स्वरा ने उससे कहा था जो स्थान वो कभी उसे देना चाहती थी वहाँ डॉक्टर सुदीप विराजमान थे। वो स्थान अब कभी किसी को नही दे सकेगी। जगजीवन ने भी उसे मायके में रोकना चाहा था पर वो नही रुकी थी। अपने बच्चों के साथ अलग रहती थी। हाँ सुदीप के साथ दर्द का रिश्ता था। बिना किसी शर्त के दोनों एकदूसरे के साथ बँधे थे। कभी-कभी दिल के रिश्तों से ज्यादा दर्द के रिश्ते साथ जुड़े महसूस करते है।


अंकुर ने विपरीत परिस्थितियों में भी मानवी को कभी अकेला नही होने दिया। उसके दिल मे मानवी के प्रति न प्यार कम हुआ और ना ही आदरभाव।


डॉक्टर सुदीप बड़ी मुश्किल से शादी में आने का समय निकाल पाये थे। यहाँ पर ही पहली बार वो मानव से मिले। मानव के अंदर का सुप्त इंसान जाग गया था। मानव ने स्वयं ही डॉक्टर से अपना परिचय कराया था। मानवी को विषम परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भी डॉक्टर से ही मिला था इसलिए वो मिलकर उनको धन्यवाद प्रकट करना चाहता था। वो ये भी देखना चाहता था कि आखिर ऐसा क्या है डॉक्टर में जो स्वरा उनकी बहुत इज्ज्त करती है और उनके पद चिन्हों पर ही चलना चाहती है? मिलने के बाद उनके प्रभाव से वो भी अछूता न रहा।


  शादी का समरोह सम्पन्न हो रहा था अंतरा संग पंकज तथा मानवी संग अंकुर एक ही मंडप में फेरे ले रहे थे। डॉक्टर स्वरा के पास आये बोले "कुछ सोच रही हो स्वरा।"

स्वरा बोली "अगर आप मेरे साथ नही होते तो मैं भी इन्हीं बन्धनों में जकड़ी रहती।"

सुदीप उसके समीप बैठते हुए बोले मैं तो इस बंधन के बगैर भी तुम्हारे साथ बँधा हुआ हूँ। यकीन मानो मैं कभी भी इस बंधन से मुक्त नही होना चाहता। तुम्हारा साथ ही मेरा सबसे बड़ा धन है।

मुझसे दूर कभी भी मत जाना।

स्वरा ने सुदीप को स्पर्श करते हुए कहा "अगर आप मेरे साथ है तो मैं कही नही जा सकती।" बहुत भाग लिया स्वयं से अब और नही भाग सकती।

सुदीप ने कहा "तो हम भी घर चले स्वरा।" वो घर वर्षो से तुम्हारा इंतजार कर रहा है। अगर तुम साथ हो तो मुझे कुछ और नही चाहिए।

स्वरा ने भी बिना हिचकिचाहट के अपना हाथ सुदीप के हाथों में दे दिया।


               समाप्त















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