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वो आखिरी खत

 संध्या की बेला थी घर मे खुशिया झूम रही थी समर और आभा की सगाई की रस्म थी बस कुछ ही दिनों में दोनों परिणय सूत्र में बंधने वाले थे। बड़ी मिन्नतों के बाद ये अवसर आया था। आभा के अभिभावकों को मनाने के लिए समर को कितने पापड़ बेलने पड़े थे ये वही जनता था। वो लोग प्रेम विवाह के समर्थक नहीं थे उन्हें मनाना किसी किला फतेह से कम न था। समर चहता था सगाई के अवसर पर वो हरे रंग की साड़ी पहने, उसपर हरा रंग बहुत जंचता था। समारोह को सफल बनाने मे आभा के पिता ने कोई कसर नही छोड़ी थी। बड़े धूमधाम से आयोजन पूरा हुआ शहर के सभी गणमान्य व्यक्ति उपस्थित हुये थे आखिर उनकी इकलौती संतान की बात थी। आभा के पिता शहर के वरिष्ठ हार्ट सर्जन थे वो अपनी बेटी के लिए डॉक्टर वर चाहते थे परंतु बेटी की जिद्द और समर के मिन्नतों से उनका दिल पसीज गया था। समर ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में मैनेजर के पद पर कार्यरत था। आभा हॉर्टिकल्चर इंस्पेक्टर थी उसे डॉक्टर बनने में कोई रूचि न थी। वो देखती थी उसके अभिभावकों का दिनचर्या कितना व्यस्त था। उसे सुकून भरी ज़िन्दगी की इच्छा थी कहती जरूरी नहीं घर में सभी डॉक्टर हो। जिस दिन से उसने सगाई की अंगूठी उं