संदेश

जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आखिरी खत (स्मृति चिन्ह-भाग2)

आभा अपलक डायरी के पन्नों को पलटती रही, सहसा उसकी नजर अधलिखे खतों पर पड़ी पर पढ़ने का साहस नहीं जुटा पायी उसे घर जाने की शीघ्रता थी। इन स्मृति चिन्हों को उसने मेज की दराज में संभाल कर रख दिया उन्हें वो घर नही ले जाना चाहती थी। नहीं चाहती थी कि पति और बेटा को अपने अतीत से अवगत कराएं। अतीत के पन्ने रह रहकर उसके स्मृति पटल पर उभर रहे थे। पीछा छुड़ाना चाहती थी बहुत सी बातों से पर मन वही पहुंच जाता था। रातभर सोने की असफल चेष्टा करती रही और करवटों में रात गुजर गयी। बेटे ने पूछा भी था, माँ कुछ परेशान हो क्या? झूठ नहीं बोल सकती थी अतः बोल दिया किसी पुराने मित्र की देहांत की खबर से दुखी हैं।    अगले दिन डायरी पढ़ना शुरू किया तो अश्रुधार बंद होने का नाम ही नही ले रहे थे। रिश्ता तोड़कर भी कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है? वो सच में कर्तव्य और प्रेम के बीच जिंदगी भर जूझता रहा। ऐसी जाने कितनी बातें थी जो अनकही रह गयी और अतीत के पन्नों में खो गयी। समर कक्षा का सबसे होनहार छात्र था हमेशा पीछे की सीट पर अकेले बैठता, वो अंतर्मुखी था, लेक्चर खत्म होते ही गायब होता। एकदिन आभा ने उससे पूछ ही लिया कि वो अक