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ये खिड़की जो बंद रहती है

   प्रेम आकर्षण से नहीं संयोग से शुरू होता है और जीवन पर्यन्त ये भाव जीवित रहता है। समर्पण और निस्वार्थ भाव ही प्रेम की पराकाष्ठा है। ऐसे ही किसी संयोग से रचना की ज़िंदगी में भी प्रेम का आगमन हुआ था। प्रेम वो ठंडी हवा का झोंका था जिसने रचना के जीवन मे अनगिनत रंग भर दिये थे, ऊँची महत्वकांक्षाओ वाली लड़की को प्रेम ने मोहपाश के बंधन में जकड़ लिया था जिससे वो कभी भी उनमुक्त नहीं होना चाहती थी ऐसी ही थी प्रेम की रचना।       आरती की सहपाठिनी एकमात्र लड़की क्रश उसके घर पर अतिथि थी। रचना यही नाम था उस साँवली सलोनी मराठी लड़की का जो उसकी नजरों में अत्यधिक सुंदरता और शालीनता की परिचायक थी पर कभी कहने का साहस नहीं जुटा पायी। उसके जैसी कोई लड़की नहीं थी, वो पढ़ने में भी अव्वल थी, शीघ्र ही लोगों से घुलमिल जाती, वाणी में भी मिठास था और अभिमान उससे परे था। वो आरती की दोस्त थी उसने परास्नातक एक साल पहले कर लिया था, आरती ने शिक्षिका बनने की प्रशिक्षण ली इसलिये एक साल पीछे रह गयी, वो अंतिम वर्ष में थी। रचना ने पीजीआई में अनुवांशिकी विभाग में अनुसंधान क्षेत्र (रिसर्च) में प्रवेश लिया था, जब तक उसे छात्रावास नही