रिश्तों का मांझा
ये जो जिंदगी की किताब है न बस उसे पढ़ने में हम थोड़ा चूके है, क्या करें हिसाब-किताब में थोड़े कच्चे है, कोई प्यार से दो बोल मीठे बोल दे तो कसम से दिल निकाल कर दे देते है। हमारी भी एक बुरी आदत है इन्द्रधनुष को देखकर दिल उछालने की। इन्द्रधनुष को देखते हीं हमारा नन्हा सा दिल उछलने और मचलने लगता और ये वाकया बारंबार हुआ है। हर जगह हमे विकल्प की आवश्यकता होती है। हमने हर जगह अपना एक ठिकाना ढूंढ रखा था सिवाय फेसबुक और व्हाट्सएप के। ये दोनों जगह फैमिली और दोस्तो के लिए सुरक्षित बचा के रखा है। सच बताये तो ये दोनों जगह अतिकष्टदायक है यहां कतई हम अपना आगमन नही चाहते। यहां लोगों की महत्वकांछा इतनी बढ़ जाती है खामखा किसी को इतना महत्व नहीं देना चाहते कि सबके अनगिनत बातों को जबरन गले लगाये। यहा हमारा प्रसिद्ध फंडा बात सबसे करो मगर प्यार हमसे करो लागू नही होता। यहा हम न तुम जानो न हम मोड पे ज्यादा अच्छे लगते हैं नहीं तो सुबह से शाम तक दिन और मुहूर्त बताने के प्रोग्राम पेश होते रहेंगे। आप खुद सोचे आप के हाथ में सुबह के चाय का प्याला भी नहीं आया और आप संदेशों के जवाबी कार्यवाही में लग जाते हैं न चाहते हुए भी मुह फुलाकर क्योकि प्रियजन जानते हैं कि आप ऑनलाइन थे और बिना जवाब दिये भाग रहे है। धीरे-धीरे ये सिलसिला थमने का नाम ही नही लेता था, कभी-कभी तो उंगलियां भी जवाब दे देती थी। त्यौहार आने से दो तीन दिन पहले टेंशन हो जाता था घंटों फोन और संदेश में बीत जाएंगे बस यही चिंता लगी रहती थी। मैं और कामचोरी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अक्सर कामचोरी के लिए बड़ो की डांट और छोटो की उलाहने सुनी है। जनाब कामचोरी मेरी आदत और बात करना मेरा पेशा है और मैं अपने इस पेशे से गद्दारी नहीं कर सकती। समय को व्यर्थं व्यतीत करने मे कोई हमारा सानी नहीं, कहने का मतलब भगवान ने बड़े फुर्सत में गढ़ा था हमें। अपनी तारीफ में हम क्या कहे आप लोग खुद ही जान जाएंगे हमें बताने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
हा तो विषय पर आते हैं हम थोड़ा सा भटक गए थे। हमे मन लगाने की बहुत शख़्त बीमारी है। हम अनुशासन प्रिय के साथ साथ अनुकरणीय विद्यार्थी भी रहे हैं प्रारम्भिक कक्षाओं में ही एकबार एक टीचर ने बोला था बेटी तुम्हें इस कक्षा में प्रवेश सिर्फ इसलिए दे रहा हूँ कि "तुम मन लगाकर पढ़ोगी और मुझे निराश नहीं करोगी।" उनकी कही उस बात का मैं आजतक विनिमय पूर्वक पालन कर रही हू "प्राण जाये पर वचन न जाये" की परंपरा अभी तक मैने जीवित रखी है।
मैने इतने वर्षों में बड़ी तल्लीनता से बस मन ही लगाया है। मन भी इतना लगा है कि कसम से डाक्टरेट की मनोनीत उपाधि कोई भी विश्वविद्यालय बुलाकर दे जाये। मैं अपने विषय से कुछ भटक गयी थी फिर से मुद्दे पे चलते हैं। हा तो जितने बार भी मैंने इन्द्रधनुष देखकर दिल उछाला और वो कितने बार टूट कर बिखर गए अगर जुड़ जाते तो एक माला पिरोयी जा सकती थी। फ़िलहाल इस दिल के टुकड़े इतने हुए कि कोई यहा गिरा कोई वहा गिरा तक ही ठीक लगता हैं। ये सारे किरदार मेरे प्रियजन, दोस्त, रिश्तेदार और आसपास के ही लोगो के इर्द-गिर्द गढ़ी हुयी हैं जिसे मैंने "रिश्तों का मांझा" नाम दिया है। हमने अभी तक सारे मोतियों को संभाल कर रखा है जिसकी एक-एक कड़ी जोड़कर कुछ अनकही कहानियां लिखने का प्रयास कर रही हू। इन सभी कहानियों में कल्पना लेश मात्र भी नहीं है पूर्ण रूप से यथार्थ का तड़का लगा हुआ है। पात्रो के नाम अवश्य काल्पनिक है अगर उनके असली नाम से लिख देती तो उनसे माफ़ी नहीं मिलती। आशा करती हूं आपलोगों का प्यार इन कहानियों को जरूर मिलेगा। कृपया आप सभी मेरे मनोबल को बढ़ाने में सहयोग करे, उम्मीद है आप लोगों को ये कहानियां रोमांचित करे और इसके पात्र इर्दगिर्द नजर आए।
आपने अपने शब्दों में अपने विचारों को बहुत अच्छे से लिखा है,
जवाब देंहटाएंऐसे ही और भी ब्लॉग लिखते रहें अपने पाठकों के लिए ।
धन्यवाद संदीप आपका बहुत-बहुत आभार🙏
हटाएंAmazing words. Portrayed the truth of life is very nice.
जवाब देंहटाएंYou have written your thoughts very well in your words,
जवाब देंहटाएंKeep writing more blogs like this for your readers.
Thanks for your appreciation. Could you please reveal your name.
हटाएंI m kuldeep gohel
हटाएंBahot hi acha likha hai aapne mam 👌👌
जवाब देंहटाएंWaahh kya khub likha h maan gaye killin it ��
जवाब देंहटाएंHum intezaar karenge aapki kahaniyon ka.. ek aadh patra humko hi bana lijiyega aur mera Naaam bhi daal sakti hain, humein bura nahi lagega. :)
जवाब देंहटाएंDeepti Hun main..Unknown dikha raha hai, follow karne k baad bhi..
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